Monday, October 24, 2011

अपनी दिवाली


दिवाली के बाद का दिन कितना अच्छा होता है ,
सुबह - सवेरे निकल जाते हैं गली - मोहल्ले में ,
मिल जाते हैं कितने ही अधजले अनार ,पटाखे ,
स्याह - बुझी तीली से सटी कुछ फुलझड़ी ,
या कुछ अनफूटे - साबुत चकरी या बम ,
जूठन के ढेर में बची - खुची मिठाई ,
खील- बताशे , बर्फी या लड्डू एकाध ,
पार साल तो चली थी हवा बेशुमार ,
पा गए थे पूरा तेल और दिए अपार,
अम्मा ने भी तली थी पूरी- कचोरी और,
हमने जलाई थी रंग- बिरंगे दीपों की कतार,
खूब जम के होती है दिवाली हर बार ,
अपनी बस्ती भी करती है हुल्लड़ ,
दिवाली के बाद ..........हर बार ...............!!!!!

7 comments:

  1. दीपावली का यथार्थ अनुभव करवाया है आपने.

    सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

    दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ.

    समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर भी आईयेगा पूनम जी.

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  2. आपको और आपके प्रियजनों को भी दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें|

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  3. आपको सपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाएँ!

    सादर

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  4. दीपावली पर्व अवसर पर आपको और आपके परिवारजनों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं

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  5. दीपावली के बाद वली ये कविता बहुत अच्छी लगी !

    "जीवन पुष्प"
    www.mknilu.blogspot.com
    मनीष कुमार नीलू
    सदस्य बन रहा हूं।

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  6. दिवाली के बाद भी दिवाली ... बहुत खूब ...
    दीपावली की मंगल कामनाएं ...

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  7. आपको दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाएँ!

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