Monday, December 10, 2012

किताब - सी


वह 
पुरातान ग्रन्थ सी ,
सिर्फ बैठेक की शेल्फ पर सजती हैं  |
वह
सस्ते नॉवेल सी ,
सिर्फ फुटपाथ पर बिकती हैं  |
वह
मनोरंजक पुस्तक सी
उधार लेकर पढ़ी जाती हैं  |
वह
ज्ञानवर्धक किताब सी ,
सिर्फ जरुरत होने पर पलटी जाती हैं  |
गन्दी , थूक, लगी उँगलियों से ,
मोड़ी, पलटी , और उमेठी जाती हैं |

पढ़ो हमें सफाई से ,
एक - एक पन्ना एहतियात से पलटते हुए ,
हम सिर्फ समय काटने का सामान नहीं ,
हम भी इन्सान है , उपहार में मिली किताब नहीं 

15 comments:

  1. बहुत सुन्दर पूनम जी....
    दिल को छू गयी ये पंक्तियाँ.

    अनु

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    1. दिल से दिल की बात

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  2. बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही भावनामई रचना .बहुत बधाई आपको

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  3. अक्षरश: सही कहा है आपने ... अनुपम प्रस्‍तुति

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  4. This comment has been removed by the author.

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  5. ऐसा नहीं समझना चाहिए ...कीमती चीजों की कदर सब कहाँ समझ पाते है इसका मतलब यह कहाँ होता है की वह कीमती नहीं .

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  6. सही कहा है..सुन्दर प्रस्तुति..

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  7. पढ़ो हमें सफाई से ,
    एक - एक पन्ना एहतियात से पलटते हुए ,
    हम सिर्फ समय काटने का सामान नहीं ,
    हम भी इन्सान है , उपहार में मिली किताब नहीं ,,,,

    बहुत उत्कृष्ट रचना....

    recent post: रूप संवारा नहीं,,,

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  8. बहुत ही शानदार........दिल को छूती पंक्तियाँ ।

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