Thursday, July 14, 2011

dadagiri

कितने सालों से हम हैं यही डटे,
इसी कुर्सी पर बरसों से जमे |
छोटे - बड़े सभी हम से डरते ,
पकड़ी नब्ज , हर की खबर रखते ,
यहाँ की वहाँ और इधर की उधर ,
करने मे बिताता वक़्त हमारा |
हमारे एक इशारे पर ही तो ,
मिनटों में पलट जाता स्टाफ सारा |
लोग कहते हैं हमने रखा है माहोल रंगीन ,
कानाफूसी , गप्पबाजी और अफवाहों  की ,
खाते है हमारे जैसे कमाई सारी|
हमें नहीं पसंद कोई भी बदलाव ,
नई तकनीक , बदलते तरीके सब है बकवास |
जो जैसा है चलने दो ,
इस फेर - बदल से न बदलेगा इतिहास |
ये नए रंगरूट कुछ बटन दबा ,
चेंज लाना चाहते हैं .
एक फाइल अगर मिनटों में खिसक गई ,
तो उसमे क्या मज़ा है .
महीनों तक नाचे ता ता थइय्या ,
उसमें  ही तो उसकी जालिम अदा है |
बात हमारी मनो  जो जैसा है चलने दो ,
कुछ यहाँ की वहाँ कह हमें कान भरने दो |


हाय - हाय हमें ही निकाल दिया ,
ईंट- ईंट से ईंट बजा देंगे, यही धरना करवा देंगे ,
देखते हैं हमारे बिना कितना दिन यह चलते हैं |
तभी किसी ने चेताया ,जोर से हिलाया ,
कितनी बार आपको था समझाया ,
अनेकों बार "मेमो "भी भिजवाया ,
पर आप उसी पर रख चने खा गए |
अनगिनत चेतवानी का भी ,
आप पर कुछ न हुआ असर |
आज इस प्रगतिशील व्यवस्था ,
की आपने धजिय्या उड़ा दी |
खुद को आप बदल न सके और
अब कर रहे है हमी को बदनाम |
खोले अपनी आंखे और देखे चारों ओर,
आप जैसे लोगो का अब नहीं चलता जोर |
सब कुछ सामने आपके बिलकुल साफ साफ़ है ,
पूरी दुनिया के सामने आपके काम की पोल है |
छुपा नहीं है किसी से,सामने है खरा का खरा ,
ऊँगली उठाने से पहले झाँक लो अपने दामन मे भी ज़रा |
यहाँ नहीं होता किसी के साथ कोई भी भेदभाव ,
पारदर्शी है यह प्रणाली , नहीं है दबा या ढका |