Saturday, February 11, 2012

beti ki pukaar.....

मत मार , मत मार , माँ मुझे मत मार ,
मैं तो  हूँ तेरा ही प्राण ,
फिर तू कैसे हो गयी इतनी कठोर , निष्प्राण ?

तुझे मार कर , कर रही हूँ  अपना और तेरा उद्धार ,
आज भी इस समाज में तेरा जीना है दुष्वार |
आज भी तेरे लिए है अग्नि परीक्षा ,
आज भी भरी सभा में है अपमान ,
किसी का कलंक तेरे लिए है श्राप |

पर जो यह सब नारे हैं -----
"बेटी कुदरत का उपहार है , न करो इसका तिरस्कार  "

यह सब बेमानी हैं , अखबारों और पत्रिका में छापे जाते  हैं ,
गावों- शहरों की दीवारों पर लिपे जाते हैं |
नेताओं के मुहं से बोले जाते हैं |
सच तो यह है ----

आज भी तू कोड़ियों के दाम बिकती है ,
दहेज की बलिदेवी पर चढ़ती है ,
रंग - रूप के आधार  पर छनती है,
खुले आम बाज़ारों मे सजती है ,
बदले के लिए तू ही है सस्ता शिकार ,
इसलिए हर ब़ार तुझ पर ही होता है वार |

माँ हूँ तेरी , नहीं सह सकती यह अत्याचार ,
इसलिए आज तेरे उदगम स्थल पर ही  ,
करती हूँ मैं तेरा बहिष्कार ||

इति ............

Sunday, February 5, 2012

सखी आया बसंत ,


सखी आया बसंत ,
गुलमोहर खिल गए |

अधखुली पलकों में ,
फिर नए सपने पल गए |
 मन के आँगन में ,
प्रेम की छाया तले..
आशा के झूले पड़ गए |

सखी आया बसंत ,
गुलमोहर खिल गए |

फूला गेंदा , महका चमन |
पाती-पाती , हीरक -माणिक |
महके , मधुर , पीत पराग कण  |
सयंम की डोरी तोड़ के ,
ह्रदय हिरन कुलाँचे भर गए |

सखी आया बसंत ,
गुलमोहर खिल गए |

हरित -धरती , नील - गगन |
ओस बूंदों से चमचम उपवन |
झरते झरने कल - कल |
रस्मों के  बंधन तोड़ कर  ,
प्रेमी युगल मिल गए |

सखी आया बसंत ,
गुलमोहर खिल गए |