दायरे - दायरे और दायरों मे दायरे ,
छोटे - बड़े , लंबे - चौड़े, गोल- चोकौर,
कहीं दिखते कहीं छिपते ,
कहीं वास्तविक कहीं काल्पनिक ,
कभी उभरते कभी झीने - झीने ,
देखो तो हर कोई सिमटा है ,
अपने - अपने दायरों के दरमियान ,
कौन है स्वतंत्र यहाँ ?
धार्मिक - सामाजिक - पारिवारिक ,
हर स्तर पर बंधा है हर कोई ,
स्वतन्त्रता एक जज्बा है ,
जो हर दिल मे सुलगता है ,
यह वो अनबुझी प्यास है ,
जिससे हर कोई झुलसता है ,
क्या मै स्वतंत्र हूँ ?
यह तो यक्ष प्रश्न है ?????
छोटे - बड़े , लंबे - चौड़े, गोल- चोकौर,
कहीं दिखते कहीं छिपते ,
कहीं वास्तविक कहीं काल्पनिक ,
कभी उभरते कभी झीने - झीने ,
देखो तो हर कोई सिमटा है ,
अपने - अपने दायरों के दरमियान ,
कौन है स्वतंत्र यहाँ ?
धार्मिक - सामाजिक - पारिवारिक ,
हर स्तर पर बंधा है हर कोई ,
स्वतन्त्रता एक जज्बा है ,
जो हर दिल मे सुलगता है ,
यह वो अनबुझी प्यास है ,
जिससे हर कोई झुलसता है ,
क्या मै स्वतंत्र हूँ ?
यह तो यक्ष प्रश्न है ?????