Tuesday, January 21, 2014

बहुत पहले ...

बहुत- बहुत...........-
बहुत पहले ...........
जितना सोच सको उससे भी पहले की बात ...
.तब नहीं पता था किसी को ,
कि क्या होता है समय ,
क्या होता है हिसाब - किताब ,
न कोई गिनता था ,
न कोई रखता था ,
न ही कहता था , नही है समय मेरे पास ...........
न थे दिन , महीने , साल ,
न पल , क्षण, घंटो का का सवाल ,
न घड़ी - घंटे और टन- टन करते घड़ियाल ,
तब --हाँ - हाँ तब भी चलता था ,
सब कुछ , होता था सब कुछ ,
अपने - आप .....
फिर चढ़ गया एक फितूर ,
इंसान रखने लगा हिसाब ,
गिनने लगा सब कुछ ,
पहाड़ - पत्थर , धरती - आकाश ,
ढलती - चढ़ती छाया का हिसाब ,
घटा- जोड़ - गुणा- भाग ,
बस तब से ------- तब ही से ,
डरने लगा , डरने लगा ,
आतंकित .................बिकने लगा .......