Saturday, June 16, 2012

कुछ असर कर जाये ----------यह धूप ......


वह मासूम सी बच्ची ..
सूरज की ओर कर मुंह ...
आंखे कर चौड़ी - बड़ी -फैला कर ...
खोलती ------ मुंदती ----खोलती ---मुंदती ------
जब पूछा मैने -- अचरज से भर ---
बोली -------- मसूमियत से ....
धूप भर रही हूँ -----
फैलानी है घर के आंगन में -----
बहुत अँधेरा है -----
सूझता नहीं हाथ को हाथ ..
अक्सर बापू भी गिर जाता है ...
कभी तो माँ को ढोल भी मान लेता है ....
नन्हा भी नहीं चल पता ठीक से ----
बिसूरता रहता है ---
रगड़ता है नंगे  फर्श पे...
कई बार लथपथ हो जाता है ---
बापू की रात को उलटाई  दारू से----
माँ भी तो अब कहाँ देख पाती है -------
वही जीर्ण -शीर्ण सी धोती लपेटे लेती है --
जो ढकती  कम -- उघाडती ज्यादा है ---------
शायद बदल जाये -----
कुछ असर कर जाये ----------यह धूप ..................