Saturday, August 3, 2013

चल झुट्ठा.... चल झुट्ठा ..

सुनो , याद है तुम्हें जब तुमने कहा ,
मुझे तुमसे प्यार है ...
चल , झुट्ठा -- कह मै खिखिलाई ,
नहीं , तू क्यों नहीं करती मेरा यकीन ॥
सच्ची - मुच्ची ?
अच्छा बता , गर मै न मिलूँ तो ?
तो - तो मै मर जाऊंगा ... 
और भी ज़ोर से हँसी, 
उन्मुक्त झरने से - खिल खिल ,
बकवास सब ,ऐसा ,सब होता रिसालों - किताबों मे .... 
तू एसी क्यों है , क्यों नही दिखता तुझे ,
मेरा लबलबाता प्यार ...
सुन हर बार जताना ज़रूरी है क्या ?
कह , इतराती , ठुमकती चल दी वह अलबेली नार .....
आज सुनो तुम , सात समुन्द्र - पार ,
साथ हँसता - बोलता परिवार ,
मै वही , कहती , चल झुट्ठा.... चल झुट्ठा ....

Tuesday, July 30, 2013

काश लौट आए

जनवरी की वो कड़कड़ाती ठंड,
एक नदी , एक सपाट पत्थर ,
उस पर सिमटे तुम - हम ...... 
एक छोटी सी कच्ची टपरी ,
एक चूल्हा , एक खदबदाती पतीली ,
फूँक - फूँक पीते तुम - हम ....... 
एक बर्फीली बहती ताल ,
एक नाव, एक मांझी ,
एक दूजे को समेटते तुम - हम ...... 
एक पतली , घुमावदार सड़क ,
एक ही मंजिल , एक ही सफर ,
हिचकोले लेते , गुनगुनाते तुम हम......
काश लौट आए ...