जनवरी की वो कड़कड़ाती ठंड,
एक नदी , एक सपाट पत्थर ,
उस पर सिमटे तुम - हम ......
एक छोटी सी कच्ची टपरी ,
एक चूल्हा , एक खदबदाती पतीली ,
फूँक - फूँक पीते तुम - हम .......
एक बर्फीली बहती ताल ,
एक नाव, एक मांझी ,
एक दूजे को समेटते तुम - हम ......
एक पतली , घुमावदार सड़क ,
एक ही मंजिल , एक ही सफर ,
हिचकोले लेते , गुनगुनाते तुम हम......
काश लौट आए ...
एक नदी , एक सपाट पत्थर ,
उस पर सिमटे तुम - हम ......
एक छोटी सी कच्ची टपरी ,
एक चूल्हा , एक खदबदाती पतीली ,
फूँक - फूँक पीते तुम - हम .......
एक बर्फीली बहती ताल ,
एक नाव, एक मांझी ,
एक दूजे को समेटते तुम - हम ......
एक पतली , घुमावदार सड़क ,
एक ही मंजिल , एक ही सफर ,
हिचकोले लेते , गुनगुनाते तुम हम......
काश लौट आए ...
आमीन..लौट कर आएंगे वर्ना कहाँ जाएंगे
ReplyDeleteबहुत खूब सुंदर रचना ,,,
ReplyDeleteRECENT POST: तेरी याद आ गई ...
बहुत सुंदर
ReplyDeleteयहाँ भी पधारे
http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_29.html
आपकी रचना कल बुधवार [31-07-2013] को
ReplyDeleteब्लॉग प्रसारण पर
हमने जाना
आप भी जानें
सादर
सरिता भाटिया
abhar
Deleteसुन्दर....
ReplyDeleteकाश लौट आये....।
ReplyDeleteक्या बात , क्या बात……रूमानी सा
ReplyDeleteहम और तुम एक एकत्व की कहानी कहती बहुत खुबसूरत एहसास
ReplyDelete