Tuesday, July 30, 2013

काश लौट आए

जनवरी की वो कड़कड़ाती ठंड,
एक नदी , एक सपाट पत्थर ,
उस पर सिमटे तुम - हम ...... 
एक छोटी सी कच्ची टपरी ,
एक चूल्हा , एक खदबदाती पतीली ,
फूँक - फूँक पीते तुम - हम ....... 
एक बर्फीली बहती ताल ,
एक नाव, एक मांझी ,
एक दूजे को समेटते तुम - हम ...... 
एक पतली , घुमावदार सड़क ,
एक ही मंजिल , एक ही सफर ,
हिचकोले लेते , गुनगुनाते तुम हम......
काश लौट आए ...

9 comments:

  1. आमीन..लौट कर आएंगे वर्ना कहाँ जाएंगे

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  2. बहुत सुंदर



    यहाँ भी पधारे

    http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_29.html

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  3. आपकी रचना कल बुधवार [31-07-2013] को
    ब्लॉग प्रसारण पर
    हमने जाना
    आप भी जानें
    सादर
    सरिता भाटिया

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  4. काश लौट आये....।

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  5. क्या बात , क्या बात……रूमानी सा

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  6. हम और तुम एक एकत्व की कहानी कहती बहुत खुबसूरत एहसास

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