Friday, May 14, 2010

Band Khidki

काफी अरसे के बाद बंद खिड़की खुली ,
तन मन को हर्षित कर गयी .
यादो की पिटारी जो कब से सहेज रखी थी ,
परत दर परत खुल गयी .
घास ,फूल , धूप की महक ,
हर कोने को छू गयी ,
खिलखिलाना ,मनाना, रूठ जाना ,
सब यादे तरोताजा हो गयी .
बड़ा लम्बा सफ़र है यह ,
मुड़ कर देखा तो पाया .
एक उम्र पीछे छोड़ आये है हम .

इति

Sunday, May 9, 2010

dayra

कितने दायरे में बंधे है हम |
दायरे , जो खींचे है स्वय हमने,
अपने चारो ओर |
दायरा , टूटते ही ,
मच गया शोर ,
चारो ओर |
उठने लगी निगाहे ,
तीखी , बेधती सी |
ये उठती निगाहे ,
धकेल देती है ,
वापिस अपने दायरे की ओर |
दायरे,  जो बनते जा रहे है ,
दलदल |
ओर हम धंसते जा रहे है ,
गहरे ,
छटपटआते ,
अवश |
..........................