कितने दायरे में बंधे है हम |
दायरे , जो खींचे है स्वय हमने,
अपने चारो ओर |
दायरा , टूटते ही ,
मच गया शोर ,
चारो ओर |
उठने लगी निगाहे ,
तीखी , बेधती सी |
ये उठती निगाहे ,
धकेल देती है ,
वापिस अपने दायरे की ओर |
दायरे, जो बनते जा रहे है ,
दलदल |
ओर हम धंसते जा रहे है ,
गहरे ,
छटपटआते ,
अवश |
..........................
No comments:
Post a Comment