Wednesday, December 22, 2010

apnapan

जब भी करती हूँ तुमसे बातें ,
अपने - आप को पा जाती हूँ ,
न दिखावा ,
न छलावा,
न बनावट ,
न सजावट ,
बस मन की परतों को खोलती जाती हूँ |
तुम भी तो ,
मंद - मंद मुस्कुराते ,
कोरों से मुझे पीते,
मेरी मस्ती ,
मेरी चंचलता ,
मेरा अल्हड़पन ,
मेरा अपनापन ,
हल्के से
थाम लेते हो हाथ मेरा |
काँप जाती हूँ ,
नाज़ुक लता सी ,
और लिपट जाती हूँ शाख से |

Monday, December 20, 2010

nadi si


तुमसे जब भी बात करती हूँ ,
उतर आती है नदी मेरी आँखों में ,
तुम्हारे स्वरों की लहरों में ,
डूबती - उतरती - बहती हूँ ,
कभी तेज , कभी मंथर ,
...गोल - गोल भंवर सी ,
इतराती - बलखाती - अल्हड़,
समा जाती हूँ तुम्हारी आँखों के समुद्र में ,
तुम भी साथ - साथ बहते - बहते ,
मुझे भर कर बाहों में हर बार ,
विलीन हो जाते हो प्रियतम बार - बार |