Saturday, August 24, 2013

वो तुम ही थे

सुनो वो तुम ही थे न ,
जो हिस्साब की क्लास मे ,
सवाल हल करने की बजाय ,
चोरी- चोरी लिखते - काटते,
हाशिये पर मेरा और अपना नाम ,
कितनी बार , अनेकों बार ,
छिपाते दूसरों से पेन की रगड़ते ज़ोर से ,
पूरी ताकत से ....... 
क्या छिपा रहे थे सबसे ,
जो पनप रहा था , मन के भीतर ,
दबी - दबी मुस्कुराहट ,
पीठ पीछे फुसफुसाहट ,
क्या सुनती नहीं थी तुम्हें ,
या सुन कर भी रहते थे अनजान,
गलती से गर कोई लेता मेरा नाम तो ,
मुंह बिचका देते , आँखें तरेर ,
हो जाते मरने - मारने को तैयार ,
सबको कहते झुठा यह सब बेसिर पेर की बात ........
सुनो , वो तुम ही थे न ,
जो आधी छुट्टी के वक़्त ,
उसी नल के पास जम कर खड़े होते ,
जहाँ मैं आती सहेलियों के साथ ,
जानबूझ कर देर तक पीते पानी ,
मै खड़ी रहती करती इंतज़ार ,
टोकने पर आँखें तरेर कहते ,
अब क्या पानी पीना भी गुनाह है,
देकर धक्का निकल जाते ,
सुनो वो तुम ही थे न ....तुम ही .....तुम .....
सबको करते - करते झूठा साबित ,
कितना सच कर बैठे ,
जो नहीं कहा कभी ,
उसी पर अमल कर बैठे ,
क्यों नहीं कह पाये ,
जो तुम कहना चाहते थे ,
और मैं सुनना चाहती थी ....सुनो ,
वो तुम ही थे न .....तुम ...ही ...तुम.........
रख दिया हाशिये पे मुझे सदा के लिए ..... वो तुम ही थे न ...........तुम....?????

Friday, August 23, 2013

( तेरी याद बाकी है )

वो तुम्ही थे न ,
जो सर्दी , गर्मी , बरसात ,
सिकुढ़ते , जलते , भीगते ,
उस बिन टपरी वाले बस - स्टॉप पर करते थे ,
मेरा दिन भर इंतज़ार ........... 
जबकि पता था कि मै ,
नहीं आऊँगी , 
फिर भी .... क्यों ???? 
वो तुम्ही थे न ,
सर्दी , गर्मी , बरसात ,
सिकुढ़ते , जलते , भीगते ,
उस कुल्फी वाले से ले कुल्फी ,
पिघलने तक करते थे इंतज़ार ,
जबकि पता था कि मै ,
नहीं खाऊँगी ,
फिर भी क्यों.....??????
आज भी वह बिन टपरी का बस स्टॉप ,
वही खड़ा है,
वह कमबख्त कुल्फी वाला भी ,
बिना नागा घंटी बजता है ,
तुम नही, बस तुम नहीं .......सिर्फ मै ...अपने साथ ॥ ( तेरी याद बाकी है )

Tuesday, August 20, 2013

याद दिलाती राखी


धागा कच्चा हो या पक्का ,
चमकीली हो या फीकी ,
कीमत नहीं प्यार के मेरी ,
भाई भेज रही हूँ वेब से राखी .... 
बचपन की याद है,
शरारतों की बरसात है ,
पतंग का माँझा ,लट्टू की डोर ,
माँ की धमकी, पापा की डांट,
उन सभी की याद दिलाती राखी ,
मेरी मांगो की लंबी लिस्ट ,
तेरे वादो की लंबी फेहरिस्त ,
कुछ पूरी , कुछ अधूरी ,
थोड़ा रूठना थोड़ा मनाना,
रोना - झिकना फिर खिलखिलाना ,
जाने क्या - क्या याद दिलाती राखी ,
साइकिल पर बैठा गली का फेरा ,
चोरी से बर्फ का गोला खाना ,
पूरी रात वी सी आर पर पिक्चर ,
टिनटिन और फ़ेन्टम की छीनाझपटी ,
बार - बार याद दिलाती यह राखी ....

Sunday, August 18, 2013

चाहूँ अपना कोना

सीखा मैने बचपन से ही ,
अपना हिस्सा सबको देना ,
बिना न नुकर सब कुछ सहना ,
न रखना तुम अपनी बात ,
बस सिर झुका करना अमल ,
यूं तो कहने को घर मेरा भी है,
फिर भी चाहूँ अपना कोना ...... 
मेरी भी करे कोई फिकर ,
मुझ को भी देखे एक नज़र ,
मेरा भी हो कोई जिक्र ,
न रह जाऊँ बन सामान,
बन धड़कन धड़कूँ मैं.....
बन मुस्कान खिल जाऊँ ,
अब तक सिर्फ बनी नींव का पत्थर,
संगमरमरी मणि बन शीर्ष पर लहराऊँ मैं .......