Sunday, August 18, 2013

चाहूँ अपना कोना

सीखा मैने बचपन से ही ,
अपना हिस्सा सबको देना ,
बिना न नुकर सब कुछ सहना ,
न रखना तुम अपनी बात ,
बस सिर झुका करना अमल ,
यूं तो कहने को घर मेरा भी है,
फिर भी चाहूँ अपना कोना ...... 
मेरी भी करे कोई फिकर ,
मुझ को भी देखे एक नज़र ,
मेरा भी हो कोई जिक्र ,
न रह जाऊँ बन सामान,
बन धड़कन धड़कूँ मैं.....
बन मुस्कान खिल जाऊँ ,
अब तक सिर्फ बनी नींव का पत्थर,
संगमरमरी मणि बन शीर्ष पर लहराऊँ मैं .......

4 comments:

  1. घर का जो कोना जिसका है वो उसी का रहना चाहिए ... उससे जुड जाती हैं यादें ... जो साथ रहती हैं ...

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  2. Kitna sach ahi..kabhi lagta hai,mai swayam kayi baar ek saman banke rah jati hun...

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