Thursday, March 8, 2012

गुजर गया

उमड़ा, गरजा , बरस गया ...
अबके सावन भी गुजर गया ..
न गुनगुनायी आंगन मे भोर ..
न उठा झूले का शोर ..
न गोरी सजी ,
न पायल बजी ,
न चूमा माथा ,
न मिला आशीष,
न केश बिखरे ,
न नाइन के नखरे ,
न महका घेवर ,
न तले अंदरसे ,
न बाबुल का संदेसा ,
न भाई का इंतजार ,
अबके सावन भी गुजर गया .....


Monday, March 5, 2012

छोड़ो न .

चलो बीच से ही शुरू  करते हैं ,
छोड़ो न शुरू से शुरू करने की बात ,
जहाँ छूट गया था सिलसिला ,
उसका अब क्या  करना गिला .....
तेरी - मेरी उन बातों का ,
उन हंसी मुलाकातों का ,
चाँद  - तारों की रातों का ,
चलो बीच से ही शुरू करते हैं ,
छोडो न शुरू से शुरू करने की बात ......
.वक़्त है कहाँ पीछे मुड़ने का ,
तुमने क्या कहा ,
मैने क्या सुना ,
उलहानो- तानों से दूर ,
अपेक्षाओं - उपेक्षाओं से परे ,
अहं- अभिमान से वर्जित ,
तेरे - मेरे प्यार से सुसज्जित ,
चलो बीच से ही शुरू करते हैं ,
छोड़ो न शुरू से शुरू करने की बात ......छोड़ो न .....





Sunday, March 4, 2012

जागते रहो ...जागते रहो ...
आवाज़ लगता रामदीन ......
चक्कर लगता पूरी कालोनी का रात भर....
सुनता है आवाज़ टी० वि० की ..
तडकते -  भड़कते विज्ञापन,
चीखते - चिल्लाते गाने ,
कही से आती  खनखनाती हंसी ,
तो कहीं डरी - सहमी सी फुसफुसाहट ,
बच्चे के रोना दे रहा सुबूत अपने होने का कहीं ,
इधर है झगड़ा  और गाली -गलौज का शोर ,
लगा कर पूरा एक घेरा ,
रुक गया लोहे के फाटक के पास ,
चिपका है दीवार पर  "छोटा परिवार ,सुखी परिवार "
चमचमाता - रंगीन - खिलखिलाता बड़ा- सा पोस्टर ..
घूम जाता है आँखों के आगे 
पीली पत्नी ... बिलबिलाते बच्चे ..
खांसता बाप औ कर्कशा माँ.........
रुक पल भर ...घूरता है .....
झटक सर फिर ..
घूमने लगता है बार बार उसी बने बनाये चक्कर में......
जागते रहो ......जागते रहो .......!!!!!