Wednesday, July 25, 2012

तुम दे न सके

सुनो क्या ज़्यादा मांगा था जो तुम दे न सके ,
वक़्त की शाख से कुछ पत्ते ,
नरम - नर्म बौर की महक ,
फूलो से झरता सुनहरा मकरंद ,
ज़्यादा  नहीं बस थोड़ा - थोड़ा .......

रहो चाहे कहीं  दिनभर ,
कुछ पल इस झुटपुटे के ,
संदली सी महकती  शाम ,
कानो मे शहदी मिठास ,
उँगलियों का हल्का स्पर्श,
ज़्यादा नहीं बस थोड़ा - थोड़ा .......

सुनो क्या ज़्यादा मांगा था जो तुम दे न सके ...........


Sunday, July 22, 2012

कहाँ हो .........सांवरे .....!!!!

ये जो गर्दन के पीछे, बाएँ तरफ की नस, .... कंधे पे ...हल्का सा नीचे ....अरे वही ...जहाँ अक्सर चलते - चलते तुम अपना हाथ हल्के से टिका दिया करते थे ....... आजकल फड़फड़ाती....बहुत है.....और फिर धीरे - धीरे यह कंपन बाजू पर टिक जाता है....वहाँ से हौले से सरकता ....... कोहनी से फिसलता ......हथेली के बीच जा पसर जाता है ...और धड़कने लगता है ......तेज ...मद्धम .....तेज.....धक - धक ---धक ----धक .......देखो....देखो....दिखा ?.....सुनो ----सुनो......सुना....? तुम्हारे स्पर्श की लकीरे ....जो तुम छोड़ गए हो .....अपने पीछे ...मेरे वजूद ....मेरी रूह ...पर .....फेरती ----शनैः- शनैः ........थिरकाती अपनी उँगलियाँ .....गूंजने लगता है संगीत ....मधुर...मदहोश ....साज बन मेरा बदन गाता है ...झूमता है तेरी धुन मे मग्न ........मीरा.....कहो या बावरी .....तक- थिन--तक---- रोती पलकें....खुली अलके .....हँसते अधर........कहाँ हो .....हो कहाँ ....कहाँ हो .........सांवरे .....!!!!