सुनो क्या ज़्यादा मांगा था जो तुम दे न सके ,
वक़्त की शाख से कुछ पत्ते ,
नरम - नर्म बौर की महक ,
फूलो से झरता सुनहरा मकरंद ,
ज़्यादा नहीं बस थोड़ा - थोड़ा .......
रहो चाहे कहीं दिनभर ,
कुछ पल इस झुटपुटे के ,
संदली सी महकती शाम ,
कानो मे शहदी मिठास ,
उँगलियों का हल्का स्पर्श,
ज़्यादा नहीं बस थोड़ा - थोड़ा .......
सुनो क्या ज़्यादा मांगा था जो तुम दे न सके ...........
वक़्त की शाख से कुछ पत्ते ,
नरम - नर्म बौर की महक ,
फूलो से झरता सुनहरा मकरंद ,
ज़्यादा नहीं बस थोड़ा - थोड़ा .......
रहो चाहे कहीं दिनभर ,
कुछ पल इस झुटपुटे के ,
संदली सी महकती शाम ,
कानो मे शहदी मिठास ,
उँगलियों का हल्का स्पर्श,
ज़्यादा नहीं बस थोड़ा - थोड़ा .......
सुनो क्या ज़्यादा मांगा था जो तुम दे न सके ...........