ये जो गर्दन के पीछे, बाएँ तरफ की नस, .... कंधे पे ...हल्का सा नीचे ....अरे वही ...जहाँ अक्सर चलते - चलते तुम अपना हाथ हल्के से टिका दिया करते थे ....... आजकल फड़फड़ाती....बहुत है.....और फिर धीरे - धीरे यह कंपन बाजू पर टिक जाता है....वहाँ से हौले से सरकता ....... कोहनी से फिसलता ......हथेली के बीच जा पसर जाता है ...और धड़कने लगता है ......तेज ...मद्धम .....तेज.....धक - धक ---धक ----धक .......देखो....देखो....दिखा ?.....सुनो ----सुनो......सुना....? तुम्हारे स्पर्श की लकीरे ....जो तुम छोड़ गए हो .....अपने पीछे ...मेरे वजूद ....मेरी रूह ...पर .....फेरती ----शनैः- शनैः ........थिरकाती अपनी उँगलियाँ .....गूंजने लगता है संगीत ....मधुर...मदहोश ....साज बन मेरा बदन गाता है ...झूमता है तेरी धुन मे मग्न ........मीरा.....कहो या बावरी .....तक- थिन--तक---- रोती पलकें....खुली अलके .....हँसते अधर........कहाँ हो .....हो कहाँ ....कहाँ हो .........सांवरे .....!!!!
बहुत सुंदर प्रस्तुती,सुंदर रचना,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST काव्यान्जलि ...: आदर्शवादी नेता,
स्पर्श का एहसास ,हाथ की लकीरों पर टिका रूह की गूंज मन को भा गई ..शब्द कम अनुभूति ज्यादा .
ReplyDeletebehtreen
ReplyDeleteसुंदर प्रयोग।..वाह!
ReplyDeleteक्षमा करें... ब्लॉग के नाम का अर्थ नहीं समझा।:(
अनुभूति .... यही है नाम ...
Deletesunder bhav..........
ReplyDeleteशब्द नहीं कहने को ,आत,आत्मा अकुलाई है ,
ReplyDeleteआपने भी क्या खूब ,ये पंक्तियां पढवाई हैं ,
सुंदर शब्दों का चयन , संयोजन कर के लाई हैं ,
दिल से निकली ,रचना ये मन को हमारे भाई है ..
बहुत बहुत शुभकामनाएं ।
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nice
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