Wednesday, November 9, 2011

mera pyaar kam nahi..........

आखिर क्यों तुम कभी समझ नहीं पाए मेरी मज़बूरी को ,
क्यों नहीं देख पाए डब डबाती आँखों मे, 
कितना प्यार था , कितनी थी प्रीति,
दिखी तो दिखी बस आग और गर्मी ,
क्यों कर नहीं देख सके चारपाई से लगी माँ ,
और मेरी पीठ पर चिपके मेरे पिता,
विधवा सी दिखती बड़ी बहन ,
और इन सबके बीच झूलती मैं ...
क्यों नहीं समझ पाए चाह कर भी नहीं सींच पाई,
इश्क के इस पौधे को ,
प्रेम मेरा तुम से ज्यादा नहीं तो कम भी न था ,
फर्क है इतना कि अनेक बन्धनों मैं जकड़ा था ,
क्या करती कैसे छोड़ पाती यह सब ,
वक़्त ही न मिला की समझा जाती कुछ ,
पर अब भी एक आस बाकी है ,
जब तक है सांस मिलने का आसरा है ,
मरी नहीं है जड़ यकीं है मुझे ,
सीचा इसे दिल के आसुओं से हमने ..