हसरत ही रही एक ऐसा घर होता ,
ईंट - गारे से नहीं ,प्यार से चिना होता ,
सिंझती रिश्तों को दिल की नमी से ,
खिड़की - दरवाजों पे झूले स्नेह की वंदनवार ,
आता - जाता हर प्राणी करता रश्क,
हर एक कोना अपना सांझा होता .....
पेलमेट पे उगते झिलमिल तारे ,
चंदा की किरणों का आँगन होता ,
धूप गुनगुनाती राग - मल्हार ,
चटक जाती हर कोपल औ पात ,
चाँदनी के पालने पे पिया ,
मिलते हम -तुम ,तुम -हम ,
गुनते - बुनते साँसों के तार......
हसरत ही रह गयी एक ऐसा घर होता ,
जब तक हल्के कदमों से ,
निर्वाक नज़रों से ,
मूक जुबां से ,
बधिर कर्णों से ,
निर्जीव धड़कन से ,
करती रहूँ समर्पण ...है तुम्हें स्वीकार ,
मिल जाता तुरंत सुघड़ - सुशीला का खिताब ,
जब खड़ी हो जाती स्वयम के लिए ,
भुरभुरा जाती प्रत्येक दीवार ,
बदल जाते तुम्हारे संवाद ,
जल जाती रातरानी सी सुबह ,
बह जाती रात की मखमली बात ...
रहने दो ढकी - बंद ,
दबा दो गहरे कुएं मे कहीं ,
दफन कर दो जमीन की परतों मे ,
कर दो इसे सात तालो मे कैद ,
न सिर उठा पाये ये .... अधूरी हसरतें ......ये अधूरी हसरतें .....
ईंट - गारे से नहीं ,प्यार से चिना होता ,
सिंझती रिश्तों को दिल की नमी से ,
खिड़की - दरवाजों पे झूले स्नेह की वंदनवार ,
आता - जाता हर प्राणी करता रश्क,
हर एक कोना अपना सांझा होता .....
पेलमेट पे उगते झिलमिल तारे ,
चंदा की किरणों का आँगन होता ,
धूप गुनगुनाती राग - मल्हार ,
चटक जाती हर कोपल औ पात ,
चाँदनी के पालने पे पिया ,
मिलते हम -तुम ,तुम -हम ,
गुनते - बुनते साँसों के तार......
हसरत ही रह गयी एक ऐसा घर होता ,
जब तक हल्के कदमों से ,
निर्वाक नज़रों से ,
मूक जुबां से ,
बधिर कर्णों से ,
निर्जीव धड़कन से ,
करती रहूँ समर्पण ...है तुम्हें स्वीकार ,
मिल जाता तुरंत सुघड़ - सुशीला का खिताब ,
जब खड़ी हो जाती स्वयम के लिए ,
भुरभुरा जाती प्रत्येक दीवार ,
बदल जाते तुम्हारे संवाद ,
जल जाती रातरानी सी सुबह ,
बह जाती रात की मखमली बात ...
रहने दो ढकी - बंद ,
दबा दो गहरे कुएं मे कहीं ,
दफन कर दो जमीन की परतों मे ,
कर दो इसे सात तालो मे कैद ,
न सिर उठा पाये ये .... अधूरी हसरतें ......ये अधूरी हसरतें .....