Thursday, August 23, 2012

.ये अधूरी हसरतें ..

हसरत ही रही एक ऐसा घर होता ,
ईंट - गारे से नहीं ,प्यार से चिना होता ,
सिंझती रिश्तों को दिल की नमी से ,
खिड़की - दरवाजों पे झूले स्नेह की वंदनवार ,
आता - जाता हर प्राणी करता रश्क,
हर एक कोना अपना सांझा होता .....
पेलमेट पे उगते झिलमिल तारे ,
चंदा की किरणों का आँगन होता ,
धूप गुनगुनाती राग - मल्हार ,
चटक जाती हर कोपल औ पात ,
चाँदनी के पालने पे पिया ,
मिलते हम -तुम ,तुम -हम ,
गुनते - बुनते साँसों के तार...... 
हसरत ही रह गयी एक ऐसा घर होता ,
जब तक हल्के कदमों से ,
निर्वाक नज़रों से ,
मूक जुबां से ,
बधिर कर्णों से ,
निर्जीव धड़कन से ,
करती रहूँ समर्पण ...है तुम्हें स्वीकार ,
मिल जाता तुरंत सुघड़ - सुशीला का खिताब ,
जब खड़ी हो जाती स्वयम के लिए ,
भुरभुरा जाती प्रत्येक दीवार ,
बदल जाते तुम्हारे संवाद ,
जल जाती रातरानी सी सुबह ,
बह जाती रात की मखमली बात ...
रहने दो ढकी - बंद ,
दबा दो गहरे कुएं मे कहीं ,
दफन कर दो जमीन की परतों मे ,
कर दो इसे सात तालो मे कैद ,
न सिर उठा पाये ये .... अधूरी हसरतें ......ये अधूरी हसरतें .....

Sunday, August 19, 2012

बदलता नही कैलेंडर का पन्ना ..

आजकल पता नहीं क्यों ,
बाज़ार  में ,रास्ते  पर ,
भीड़ में , अकेले में ,
पार्क की बेंच पे ,
गलियारों में ,
मुझे एकाकी वृद्ध ,
अचानक बहुतायात नज़र ,
आने लगे हैं ...........
शायद है सब कुछ ,
पहले ही जैसा ,
पर उम्र के इस दौर पे आ ,
जो तेजी से दौड़ रही ढलान को ,
भय , शंका न जाने कैसा डर सता रहा है ......
जानती हूँ नहीं बदल सकती ,
वक़्त की लकीर को ,
मालूम है धरा हूँ मै ,
मुझसे जुड़ी मेरी पौध  ,
ज़ल्द ही  उन्हें अलग रोपने ,
का समय करीब  आ रहा है ,
इसी मे है उनकी तरक्की ,
पर फिर भी मन रह -रह ,
न जाने क्यों हो जाता है उदास ......
मैं भी बन जाऊँगी उस भीड़ का हिस्सा ,
यादों का ले सहारा जो काटे दिन ,
एक आवाज़ सुनने को तरसता है ,
नजरें देखे सिर्फ  तारीख ,
बदलता नही कैलेंडर का पन्ना ..........