Sunday, August 19, 2012

बदलता नही कैलेंडर का पन्ना ..

आजकल पता नहीं क्यों ,
बाज़ार  में ,रास्ते  पर ,
भीड़ में , अकेले में ,
पार्क की बेंच पे ,
गलियारों में ,
मुझे एकाकी वृद्ध ,
अचानक बहुतायात नज़र ,
आने लगे हैं ...........
शायद है सब कुछ ,
पहले ही जैसा ,
पर उम्र के इस दौर पे आ ,
जो तेजी से दौड़ रही ढलान को ,
भय , शंका न जाने कैसा डर सता रहा है ......
जानती हूँ नहीं बदल सकती ,
वक़्त की लकीर को ,
मालूम है धरा हूँ मै ,
मुझसे जुड़ी मेरी पौध  ,
ज़ल्द ही  उन्हें अलग रोपने ,
का समय करीब  आ रहा है ,
इसी मे है उनकी तरक्की ,
पर फिर भी मन रह -रह ,
न जाने क्यों हो जाता है उदास ......
मैं भी बन जाऊँगी उस भीड़ का हिस्सा ,
यादों का ले सहारा जो काटे दिन ,
एक आवाज़ सुनने को तरसता है ,
नजरें देखे सिर्फ  तारीख ,
बदलता नही कैलेंडर का पन्ना ..........

9 comments:

  1. आशाएं ना रखें ..जीवन अच्छा लगेगा !
    आभार खूबसूरत रचना के लिए !

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  2. कभी कभी ऐसा लगता है और यदि ऐसा हो भी गया तो वह हमारी बदनसीबी आप भरोसा रखिये ऐसा होगा ही नहीं जो बोता है वही काटता है

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  3. सुन्दर प्रस्तुति। मरे पोस्ट पर आपका आमंत्रण है। धन्यवाद।

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  4. बहुत सुंदर । यही जीवन है और हमें इसे ही जीना है ।

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  5. गुजरते वक्त के साथ हम केवल स्मृतियाँ बनकर रह जाते हैं

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  6. बहुत खुबसूरत है पोस्ट।

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