Thursday, March 8, 2012

गुजर गया

उमड़ा, गरजा , बरस गया ...
अबके सावन भी गुजर गया ..
न गुनगुनायी आंगन मे भोर ..
न उठा झूले का शोर ..
न गोरी सजी ,
न पायल बजी ,
न चूमा माथा ,
न मिला आशीष,
न केश बिखरे ,
न नाइन के नखरे ,
न महका घेवर ,
न तले अंदरसे ,
न बाबुल का संदेसा ,
न भाई का इंतजार ,
अबके सावन भी गुजर गया .....


7 comments:

  1. shaandar, bahut sundar rachna

    holi ki hardik shubhkaamnayen

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  2. अबके सावन भी गुजर गया ..
    न गुनगुनायी आंगन मे भोर ..

    कैसे...?
    पता ही नहीं चला....

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  3. बहुत खूब ... तनहा सावन को बहुत खूब पकड़ा है ...

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  4. .


    बहुत सुंदर !
    मन तक पहुंचने वाले भाव हैं आपकी लघु कविता में …
    आभार !

    फागुन में सावन की रचना पढ़ने का भी अपना ही आनंद है !
    :)


    (गूगल की समस्या के चलते होली की शुभकामनाएं यथासमय संप्रेषित नहीं हो पाई )


    विलंब से ही सही ,
    स्वीकार कीजिए मंगलकामनाएं आगामी होली तक के लिए …
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    ♥होली ऐसी खेलिए, प्रेम पाए विस्तार !♥
    ♥मरुथल मन में बह उठे… मृदु शीतल जल-धार !!♥


    आपको सपरिवार
    होली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
    - राजेन्द्र स्वर्णकार
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  5. कुछ बाक़ी रह जाने की, कुछ छूट जाने की अनुभूति और उस कसर की कसक लगता है शब्दों का आकार पा गई है। अच्छी रचना आपको बधाई पूनम जी!

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