वह एक कलाकार की भांति चित्र बनती है ,
रंग - तुलिका और कागज की बजाय ,
जनता के समक्ष खुद को सजाती है
कुछ मित्रों के मध्य ,बिन बात मुस्कराती है ,
उसकी स्मित रेखा ज़्यादा ही खिच जाती है
दो - चार लोगो के बीच, गंभीर हो जाती है ,
हल्के से सिर हिला दुनिया की चर्चा कर जाती है
अन्य परिजनों के बीच शर्मीली -शांत मूक रह जाती है ,
उसकी मौजूदगी ही वहां से नज़रंदाज़ हो जाती है
लोकप्रिय होना चाहती है ,घुल - मिल जाना चाहती है
समान बनाना चाहती है ,साबित करना चाहती है
उसे देख सब उसकी तरह ही बनाना चाहती है
कितना अपनापन ,सामंजस्य और उन्मुक्तता ,
पर अक्सर एकांत मे वह अपने से ही करती है,
एक सवाल बार - बार ....
कौन हूँ मैं.....मैं हूँ कौन ??????
रंग - तुलिका और कागज की बजाय ,
जनता के समक्ष खुद को सजाती है
कुछ मित्रों के मध्य ,बिन बात मुस्कराती है ,
उसकी स्मित रेखा ज़्यादा ही खिच जाती है
दो - चार लोगो के बीच, गंभीर हो जाती है ,
हल्के से सिर हिला दुनिया की चर्चा कर जाती है
अन्य परिजनों के बीच शर्मीली -शांत मूक रह जाती है ,
उसकी मौजूदगी ही वहां से नज़रंदाज़ हो जाती है
लोकप्रिय होना चाहती है ,घुल - मिल जाना चाहती है
समान बनाना चाहती है ,साबित करना चाहती है
उसे देख सब उसकी तरह ही बनाना चाहती है
कितना अपनापन ,सामंजस्य और उन्मुक्तता ,
पर अक्सर एकांत मे वह अपने से ही करती है,
एक सवाल बार - बार ....
कौन हूँ मैं.....मैं हूँ कौन ??????
poonam ji,
ReplyDeletebahut sundar rachna
बहुत बढ़िया प्रस्तुति,भावपूर्ण सुंदर रचना,...पूनम जी,..बधाई
ReplyDeletebahut hi rochak....
ReplyDeleteshukriya
Deleteबहुत खूब ... अपने आप से संवाद अच्छा लगा बहुत ही ...
ReplyDeleteshandar aur behatrin post.
ReplyDeleteshukriyya
Deleteभावप्रवण कविता के लिए बधाई स्वीकार करें।
ReplyDeleteवार्तालाप....खुद का खुद से....!!
ReplyDeleteसुन्दर......!!!
बहुत बढ़िया प्रस्तुति, सुंदर रचना,...
ReplyDeleteRESENT POST...काव्यान्जलि ...: तब मधुशाला हम जाते है,...
यह प्रश्न सालता है हमेशा...कौन हूँ मैं...उम्दा!!
ReplyDeletebahut sunder rachna.....ekant me sab khud ko hi khojte hai....badhiya prastuti....mere blog par aapka swagat hai
ReplyDeletedhnyawad , zarur apka blog padungi
Deleteपूनम जी
ReplyDeleteनमस्कार !
...बेहतरीन रचना गहरी अभिव्यक्ति।
जरूरी कार्यो के ब्लॉगजगत से दूर था
आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ
dhnyawad....welcome back
Deleteसुन्दर प्रस्तुति !
ReplyDeleteआभार !
यह तो यक्ष प्रश्न है...
ReplyDeleteमैं हूँ कौन???मैं ही नहीं जानता...
बहुत सुन्दर रचना...
बहुत ही बेहतरीन रचना....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
dhnyawad...zarur
Deletedhnyawad, zarur apke blog par aaungi
ReplyDeleteशाश्वत प्रश्न, शाश्वत समस्या, अच्छी कविता!
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