Monday, March 12, 2012

कलाकार

वह एक कलाकार की भांति चित्र बनती है ,
रंग - तुलिका और कागज की बजाय ,
जनता के समक्ष खुद को सजाती है 
कुछ मित्रों के मध्य ,बिन बात मुस्कराती है ,
उसकी स्मित रेखा ज़्यादा ही खिच जाती है 
दो - चार लोगो के बीच, गंभीर हो जाती है ,
हल्के से सिर हिला दुनिया की चर्चा कर जाती है 
अन्य परिजनों के बीच शर्मीली -शांत मूक रह जाती है ,
उसकी मौजूदगी ही वहां से नज़रंदाज़ हो जाती है 
लोकप्रिय होना चाहती है ,घुल - मिल जाना चाहती है 
समान बनाना चाहती है ,साबित करना चाहती है 
उसे देख सब उसकी तरह ही बनाना चाहती है 
कितना अपनापन ,सामंजस्य और उन्मुक्तता ,
पर अक्सर एकांत मे वह अपने से ही करती है, 
एक सवाल बार - बार ....
कौन हूँ मैं.....मैं हूँ कौन ??????

21 comments:

  1. बहुत बढ़िया प्रस्तुति,भावपूर्ण सुंदर रचना,...पूनम जी,..बधाई

    ReplyDelete
  2. बहुत खूब ... अपने आप से संवाद अच्छा लगा बहुत ही ...

    ReplyDelete
  3. shandar aur behatrin post.

    ReplyDelete
  4. भावप्रवण कविता के लिए बधाई स्वीकार करें।

    ReplyDelete
  5. वार्तालाप....खुद का खुद से....!!
    सुन्दर......!!!

    ReplyDelete
  6. यह प्रश्न सालता है हमेशा...कौन हूँ मैं...उम्दा!!

    ReplyDelete
  7. bahut sunder rachna.....ekant me sab khud ko hi khojte hai....badhiya prastuti....mere blog par aapka swagat hai

    ReplyDelete
  8. पूनम जी
    नमस्कार !
    ...बेहतरीन रचना गहरी अभिव्‍यक्ति।
    जरूरी कार्यो के ब्लॉगजगत से दूर था
    आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ

    ReplyDelete
  9. सुन्दर प्रस्तुति !
    आभार !

    ReplyDelete
  10. यह तो यक्ष प्रश्न है...
    मैं हूँ कौन???मैं ही नहीं जानता...

    बहुत सुन्दर रचना...

    ReplyDelete
  11. बहुत ही बेहतरीन रचना....

    मेरे ब्लॉग
    पर आपका हार्दिक स्वागत है।

    ReplyDelete
  12. dhnyawad, zarur apke blog par aaungi

    ReplyDelete
  13. शाश्वत प्रश्न, शाश्वत समस्या, अच्छी कविता!

    ReplyDelete