वो तुम्ही थे न ,
जो सर्दी , गर्मी , बरसात ,
सिकुढ़ते , जलते , भीगते ,
उस बिन टपरी वाले बस - स्टॉप पर करते थे ,
मेरा दिन भर इंतज़ार ...........
जबकि पता था कि मै ,
नहीं आऊँगी ,
फिर भी .... क्यों ????
वो तुम्ही थे न ,
सर्दी , गर्मी , बरसात ,
सिकुढ़ते , जलते , भीगते ,
उस कुल्फी वाले से ले कुल्फी ,
पिघलने तक करते थे इंतज़ार ,
जबकि पता था कि मै ,
नहीं खाऊँगी ,
फिर भी क्यों.....??????
आज भी वह बिन टपरी का बस स्टॉप ,
वही खड़ा है,
वह कमबख्त कुल्फी वाला भी ,
बिना नागा घंटी बजता है ,
तुम नही, बस तुम नहीं .......सिर्फ मै ...अपने साथ ॥ ( तेरी याद बाकी है )
जो सर्दी , गर्मी , बरसात ,
सिकुढ़ते , जलते , भीगते ,
उस बिन टपरी वाले बस - स्टॉप पर करते थे ,
मेरा दिन भर इंतज़ार ...........
जबकि पता था कि मै ,
नहीं आऊँगी ,
फिर भी .... क्यों ????
वो तुम्ही थे न ,
सर्दी , गर्मी , बरसात ,
सिकुढ़ते , जलते , भीगते ,
उस कुल्फी वाले से ले कुल्फी ,
पिघलने तक करते थे इंतज़ार ,
जबकि पता था कि मै ,
नहीं खाऊँगी ,
फिर भी क्यों.....??????
आज भी वह बिन टपरी का बस स्टॉप ,
वही खड़ा है,
वह कमबख्त कुल्फी वाला भी ,
बिना नागा घंटी बजता है ,
तुम नही, बस तुम नहीं .......सिर्फ मै ...अपने साथ ॥ ( तेरी याद बाकी है )
तुम नही, बस तुम नहीं .......सिर्फ मै ...अपने साथ ॥
ReplyDeleteशुभप्रभात
ReplyDeleteलाजबाब कविता
हार्दिक शुभकामनायें
नमस्कार आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (25-08-2013) के चर्चा मंच -1348 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
ReplyDeleteयही होता है !
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना..
ReplyDeleteखुबसूरत अभिवयक्ति...... .
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