anubuthi
Monday, July 22, 2013
नज़र
मैने तो यूं ही कहा ,
अल्लाह का मुझ पर कर्म हे,
तू जो मेरे नसीब मे हे ,
तब से आज तक हम ,
कभी माथे ,तो कभी हाथों की लकीर ढूंढते हे ,
वाह रे खुदा ये तेरी कैसी खुदाई ,
हमने , खुद को खुद की नज़र लगाई .
1 comment:
Ramakant Singh
July 24, 2013 at 8:32 PM
पुरे कायनात को समेटती निःशब्द करती
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पुरे कायनात को समेटती निःशब्द करती
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