तुम जो मेरे अपने हो
फिर यह रेखा बांट्ती सी
या बांटने के भ्रम सी
क्यों आती है मध्य हमारे
सुनो प्रिय , आवश्यक है,
रेखा का बीच मे आना ।
क्योंकि आवश्यक है,
अस्तित्व का बना रहना ।
अपनी अस्मिता , पह्चान ,
बहुत अधिक सार्थक है ।
अतः कभी भी नही निकल पाओगी ,
इस भ्रम से ॥
यही अस्मिता की सार्थक्अता ,
तो है रेखा बाटंती सी ॥
फिर यह रेखा बांट्ती सी
या बांटने के भ्रम सी
क्यों आती है मध्य हमारे
सुनो प्रिय , आवश्यक है,
रेखा का बीच मे आना ।
क्योंकि आवश्यक है,
अस्तित्व का बना रहना ।
अपनी अस्मिता , पह्चान ,
बहुत अधिक सार्थक है ।
अतः कभी भी नही निकल पाओगी ,
इस भ्रम से ॥
यही अस्मिता की सार्थक्अता ,
तो है रेखा बाटंती सी ॥
जहाँ दरिया समंदर से मिला वहां दरिया नहीं रहता...जरुरी है अस्तित्व के बीच हलकी रेखा...
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