यह आधा - अधूरा सपना मेरा ,
अक्सर मुझे रातो को जगाता है |
तुम्हारे आस पास होने का भ्रम ,
मुझे चक्रव्यूह सा भरमाता है |
ब़ार - ब़ार छूती हूँ माथे की लकीरों को ,
जहाँ छुआ था तुमने ,
वह गर्म अहसास अभी भी मुझे ,
अग्निशिखा सा जलाता है |
इति ..............
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