आज , अपनी आँखों में देखा ,
तुम्हारे सपने को देखा |
पाया अपने आप को वहाँ ,
हर जगह सर्वत्र ,
अपलक ताक रहे थे तुम ,
नन्हे बालक की भांति |
और मैं मौन , मुस्कराती ,
भांप रही थी तुम्हारी ,
उत्सुकता तथा आकुलता |
उन कुछ पलों मे ,
गुजर गए अनगिनत युग |
खुली पलक , टूटा सपना ,
तुम थे वहीं , तुम हो जहाँ |
न हो यहाँ , न हो वहाँ |
तन से वहाँ, मन से यहाँ |
No comments:
Post a Comment