माँ की अब यही रहती है वही पुरानी जिद्द ,
बिटिया तुम तो बस लिखा करो चिठ्ठी |
हँस कर कहा, "हम रोज़ ही तो बतियाते हैं ,
फिर काहे को लिखे हम वही जो कह -सुन जाते हैं |
पता तो है हमको सबका सबकुछ रोज़ का हिसाब किताब ,
हाथरस वाले मामा की छुट्टन का ब्याह तय हो गया ,
बिना दहेज़ के बहुत ही बढ़िया विदेसी वर मिल गया |
एटा वाले चच्चा का मंझला बेटा अभी भी है बेकार ,
और उनका बड़का , शादी होते ही घर से निकल गया |
बहुत दिनों से बीमार दाउदपुर वाले काका गुज़र गए ,
अच्छा ही है सोने की सीढ़ी चढ़ सुवर्ग सिधार गए |
आंगन मे लगे अमरुद के फल, सुनहरे हो पक गए ,
गाँव के बेकार पड़े खेत, भी कब के बिक गए |
गली के नुक्कड़ की हलवाई की दुकान खूब चलती है ,
जलेबी और समोसे नहीं अब वहाँ चाउमीन बिकती है |
परसाल जो भेजी थी, किसी के हाथ कान की मशीन ,
अब शायद तुम्हें, सुनने में कुछ तकलीफ दे रही है |
सारी बातें तो हो जाती हैं लगभग हर रोज़ ,
फिर भी तुम्हरी काहे वही पुरानी जिद्द |
अरी बिटिया ! पत्री हम बार - बार पढ़ते हैं,
कभी खुद तो कभी गुड्डन से पड़वाते हैं |
उसे छू - छूकर तुमका ही तो दुलारते हैं ,
सिरहाने के निचे रख सो जाते हैं ...
तुमको सदा ही अपने पास पाते हैं............!!!
बिटिया तुम तो बस लिखा करो चिठ्ठी |
हँस कर कहा, "हम रोज़ ही तो बतियाते हैं ,
फिर काहे को लिखे हम वही जो कह -सुन जाते हैं |
पता तो है हमको सबका सबकुछ रोज़ का हिसाब किताब ,
हाथरस वाले मामा की छुट्टन का ब्याह तय हो गया ,
बिना दहेज़ के बहुत ही बढ़िया विदेसी वर मिल गया |
एटा वाले चच्चा का मंझला बेटा अभी भी है बेकार ,
और उनका बड़का , शादी होते ही घर से निकल गया |
बहुत दिनों से बीमार दाउदपुर वाले काका गुज़र गए ,
अच्छा ही है सोने की सीढ़ी चढ़ सुवर्ग सिधार गए |
आंगन मे लगे अमरुद के फल, सुनहरे हो पक गए ,
गाँव के बेकार पड़े खेत, भी कब के बिक गए |
गली के नुक्कड़ की हलवाई की दुकान खूब चलती है ,
जलेबी और समोसे नहीं अब वहाँ चाउमीन बिकती है |
परसाल जो भेजी थी, किसी के हाथ कान की मशीन ,
अब शायद तुम्हें, सुनने में कुछ तकलीफ दे रही है |
सारी बातें तो हो जाती हैं लगभग हर रोज़ ,
फिर भी तुम्हरी काहे वही पुरानी जिद्द |
अरी बिटिया ! पत्री हम बार - बार पढ़ते हैं,
कभी खुद तो कभी गुड्डन से पड़वाते हैं |
उसे छू - छूकर तुमका ही तो दुलारते हैं ,
सिरहाने के निचे रख सो जाते हैं ...
तुमको सदा ही अपने पास पाते हैं............!!!
अरी बिटिया ! पत्री हम बार - बार पढ़ते हैं,
ReplyDeleteकभी खुद तो कभी गुड्डन से पड़वाते हैं |
उसे छू - छूकर तुमका ही तो दुलारते हैं ,
सिरहाने के निचे रख सो जाते हैं ...
तुमको सदा ही अपने पास पाते हैं............!!!
mann ka kona kona bheeg gaya
पूनम जी,
ReplyDeleteबहुत मार्मिक.....भावनाओं में डूबी ये चिट्ठी बहुत भाई....प्रशंसनीय|
Shukriya....
ReplyDeleteउसे छू - छूकर तुमका ही तो दुलारते हैं ,
ReplyDeleteसिरहाने के निचे रख सो जाते हैं ...
तुमको सदा ही अपने पास पाते हैं.......
बहुत ही सुन्दर भावमय करते शब्द ।।