Thursday, March 17, 2011

mera ithhas

मैं, न सीता , न राधा,


न ही कुंती या कैकेयी ,

साधारण - सरल नारी


जीवित हूँ , इक विश्वास पे ,

दो मीठे बोलो के प्यार पे ,

घायल कर दे ऐसे नश्तर नहीं ,

चीर दे दिल वो तेवर नहीं


तेरे साथ जुड़ा, मेरा अस्तिव ,

मेरा तन , मेरा मन ,

मेरी वेदना, मेरा अहं....


फिर क्यों ऐसा हुआ ,

तुम अपने मे ही मगन

प्रशन करता है आज ,

मुझसे ही मेरा इतिहास ...........



6 comments:

  1. मैं, न सीता , न राधा,
    न ही कुंती या कैकेयी ,
    साधारण - सरल नारी
    bahut hi achhi rachna

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  2. आदरणीया पूनम जी
    सादर सस्नेहाभिवादन !

    आपके यहां आ'कर बहुत अच्छा लगा । अच्छी भावप्रद रचनाएं और ख़ूबसूरत ब्लॉग … शीतल छांव का एहसास है … सचमुच !

    …और प्रस्तुत रचना … क्या बात है ! ख़ूब !
    जीवित हूं , इक विश्वास पे
    दो मीठे बोलो के प्यार पे …

    … …
    … … …
    तेरे साथ जुड़ा, मेरा अस्तिव ,
    मेरा तन , मेरा मन ,
    मेरी वेदना, मेरा अहं…


    मर्म को स्पर्श कर लेने वाले भाव हैं ,
    बहुत सुंदर !


    हार्दिक बधाई !

    अरे ! होली तो आ पहुंची … :)

    होली ऐसी खेलिए , प्रेम का हो विस्तार !
    मरुथल मन में बह उठे शीतल जल की धार !!

    ♥ होली की शुभकामनाएं ! मंगलकामनाएं ! ♥


    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  3. पूनम जी,

    वाह...बहुत सुन्दर एक प्रश्न खड़ा करती है ये पोस्ट .....प्रशंसनीय|

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  4. "तेरे साथ जुड़ा, मेरा अस्तित्व,
    मेरा तन , मेरा मन ,
    मेरी वेदना, मेरा अहं....
    फिर क्यों ऐसा हुआ ,
    तुम अपने मे ही मगन
    प्रश्न करता है आज ,
    मुझसे ही मेरा इतिहास..........."

    सही कहा...!
    सब कुछ किसी के साथ जोड़ देने के बाद ही
    अस्तित्व की खोज शुरू होती है....
    अपने से ही प्रश्न......
    और उत्तर की खोज भी.....
    भावपूर्ण रचना !!

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