कभी तुझे बैठे नहीं देखा ,
कभी तुझे लेटे नहीं देखा ,
भागती - दौड़ती फिरकनी - सी ,
सबकी चिंता , सबकी फ़िक्र |
दो घड़ी तू बैठ क्यों नहीं जाती ,
अपने साथ वक़्त क्यों नहीं बिताती ,
कंपकंपाते हाथ , लड़खडाते पांवों को ,
अब तो करने दे कुछ आराम |
पर हर बार तू हँस देती है ,
अरे ! बैठ गयी तो बैठी रह जाउँगी,
इस जन्म में तो नहीं पर शायद ,
परलोक जा कर ही आराम पाऊँगी ,
चलने दो जब तक चलता यह तन ,
अपना नहीं , तुम सब में है मेरा मन ............!!!
Thanks for your visit to iyatta. Nice of expression of nice feelings in simple words. In fact , I liked your previous post' Amma ki zid'very much.
ReplyDeletebahut bahut shukriya....
ReplyDeletedin bhar firkani si bhaagti maa ... aise hi sukun pati hai
ReplyDeleteSahi kaha apne rashmi ji , Maa akhir aisi hi hoti hae...
ReplyDeleteपूनम जी,
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर लगी ये पोस्ट सच कहा है आपने उन तमाम नारियों को मेरा सलाम .....रंगों का त्यौहार बहुत मुबारक हो आपको और आपके परिवार को|
सुन्दर कविता
ReplyDeleteहर नारी की यही कहानी है
शुभकामनाये
AAp sab ko bhi Holi ki mubarkbaad...
ReplyDeleteआदरणीया पूनम जी
ReplyDeleteसस्नेह अभिवादन !
नारी की वास्तविक कहानी है इस कविता में-
चलने दो जब तक चलता यह तन ,
अपना नहीं , तुम सब में है मेरा मन ………!!!
सच, श्रीमतीजी में आपकी रचना वाली नारी को देखता रहता हूं … :) इसी लिए तो नारी शक्ति को नमन करते हुए लिखता रहता हूं … नीचे दिए गए लिंक द्वारा आ'कर देखें
विलंब से ही सही …
विश्व महिला दिवस की हार्दिक बधाई !
शुभकामनाएं !!
मंगलकामनाएं !!!
♥ मां पत्नी बेटी बहन;देवियां हैं,चरणों पर शीश धरो!♥
- राजेन्द्र स्वर्णकार