Wednesday, November 9, 2011

mera pyaar kam nahi..........

आखिर क्यों तुम कभी समझ नहीं पाए मेरी मज़बूरी को ,
क्यों नहीं देख पाए डब डबाती आँखों मे, 
कितना प्यार था , कितनी थी प्रीति,
दिखी तो दिखी बस आग और गर्मी ,
क्यों कर नहीं देख सके चारपाई से लगी माँ ,
और मेरी पीठ पर चिपके मेरे पिता,
विधवा सी दिखती बड़ी बहन ,
और इन सबके बीच झूलती मैं ...
क्यों नहीं समझ पाए चाह कर भी नहीं सींच पाई,
इश्क के इस पौधे को ,
प्रेम मेरा तुम से ज्यादा नहीं तो कम भी न था ,
फर्क है इतना कि अनेक बन्धनों मैं जकड़ा था ,
क्या करती कैसे छोड़ पाती यह सब ,
वक़्त ही न मिला की समझा जाती कुछ ,
पर अब भी एक आस बाकी है ,
जब तक है सांस मिलने का आसरा है ,
मरी नहीं है जड़ यकीं है मुझे ,
सीचा इसे दिल के आसुओं से हमने ..

10 comments:

  1. क्यों नहीं समझ पाए चाह कर भी नहीं सींच पाई,
    इश्क के इस पौधे को ,

    गहन अनुभूति
    शुभकामनाये

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  2. बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति , बधाई.

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  3. संवेदनशील रचना, असमंजस्य की स्थिति ...

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  4. सिसकती रूह में सुलगती प्रेम... बेहद भावपूर्ण...
    बधाई हो
    मेरे ब्लॉग पे आपका हार्दिक स्वागत ...

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  5. बहुत सुंदर
    भावपूर्ण रचना
    कभी कभी ऐसी रचनाएं पढने को मिलती हैं

    शुभकामनाएं

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  6. दर्द, लेकिन खूबसूरत कविता!!

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  7. बहुत सुंदर
    क्या कहने
    कम ही ऐसी रचनाएं पढने को मिलती हैं

    शुभकामनाएं

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  8. सुभानाल्लाह......... कई बार कर्तव्यों का स्थान भावनाओ से ऊँचा होता है और होना भी चाहिए|

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  9. संवेदनशील,,,,
    खूबसूरत कविता!!

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