उस नाज़ुक ...मखमली हवा को ,
बाँके गबरू छैला से .....
न जाने कैसे जाने - अनजाने .....ही प्यार हो गया ।
वह करती उसका पीछा दिन औ रात
उसे सहलाती तो छेड़ जाती कभी,
बिखेरती उसके कदमों मे,
बेले - जुही - चम्पा की कलियाँ ।
कभी ले जा उड़ा अपने संग ,
गहरी - हसीन वादियों की बाहों मे ।
नौजवान भी दीवान उस पगली हवा का,
दोनों यथार्थ से परे , अपने मे ही मस्त ।
अपनी इस एन्द्र्जलिक दुनिया मे प्रसन्न,
पर किस्मत को था न मंजूर ....
पड़ गयी दुष्ट कुमारी की शौकीन नज़र ,
गबरू नौजवान के तन की और ,
नहीं कर पायी सहन बाँके का इंकार ....
उठवा लिया भेज लाम औ लश्कर
बेबस हवा बहुत चीखी और चिल्लाई ,
उखड़े पाँव सेना के घड़ी - दो घड़ी ,
पटका सिर ...हुई लुहलहान...किया पीछा ...
गुस्से से बौखलाई करती सब तहस - नहस ,
आग - बबूला प्रचंड बवंडर उठाती,
चीखती -- फुफकारती - गरजती ....
आज भी ढूंढती अपना सनम ..................@ पूनम
बाँके गबरू छैला से .....
न जाने कैसे जाने - अनजाने .....ही प्यार हो गया ।
वह करती उसका पीछा दिन औ रात
उसे सहलाती तो छेड़ जाती कभी,
बिखेरती उसके कदमों मे,
बेले - जुही - चम्पा की कलियाँ ।
कभी ले जा उड़ा अपने संग ,
गहरी - हसीन वादियों की बाहों मे ।
नौजवान भी दीवान उस पगली हवा का,
दोनों यथार्थ से परे , अपने मे ही मस्त ।
अपनी इस एन्द्र्जलिक दुनिया मे प्रसन्न,
पर किस्मत को था न मंजूर ....
पड़ गयी दुष्ट कुमारी की शौकीन नज़र ,
गबरू नौजवान के तन की और ,
नहीं कर पायी सहन बाँके का इंकार ....
उठवा लिया भेज लाम औ लश्कर
बेबस हवा बहुत चीखी और चिल्लाई ,
उखड़े पाँव सेना के घड़ी - दो घड़ी ,
पटका सिर ...हुई लुहलहान...किया पीछा ...
गुस्से से बौखलाई करती सब तहस - नहस ,
आग - बबूला प्रचंड बवंडर उठाती,
चीखती -- फुफकारती - गरजती ....
आज भी ढूंढती अपना सनम ..................@ पूनम
आपकी इस कृति में नवल विचारों की शीतल बयार है. और फिर वेदना भी, जो सीधे ह्रदय तक पहुंचती है. बहुत सुंदर.
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट रचना का उल्लेख सोमवार (20-04-2015) की चर्चा "चित्र को बनाएं शस्त्र, क्योंकि चोर हैं सहस्त्र" (अ-२ / १९५१, चर्चामंच) पर भी किया गया है.
सूचनार्थ
http://charchamanch.blogspot.com/2015/04/20-1951.html
मार्मिक ... इसको प्यार तो नही ही कह सकते ...
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