मत मार , मत मार , माँ मुझे मत मार ,
मैं तो हूँ तेरा ही प्राण ,
फिर तू कैसे हो गयी इतनी कठोर , निष्प्राण ?
तुझे मार कर , कर रही हूँ अपना और तेरा उद्धार ,
आज भी इस समाज में तेरा जीना है दुष्वार |
आज भी तेरे लिए है अग्नि परीक्षा ,
आज भी भरी सभा में है अपमान ,
किसी का कलंक तेरे लिए है श्राप |
पर जो यह सब नारे हैं -----
"बेटी कुदरत का उपहार है , न करो इसका तिरस्कार "
यह सब बेमानी हैं , अखबारों और पत्रिका में छापे जाते हैं ,
गावों- शहरों की दीवारों पर लिपे जाते हैं |
नेताओं के मुहं से बोले जाते हैं |
सच तो यह है ----
आज भी तू कोड़ियों के दाम बिकती है ,
दहेज की बलिदेवी पर चढ़ती है ,
रंग - रूप के आधार पर छनती है,
खुले आम बाज़ारों मे सजती है ,
बदले के लिए तू ही है सस्ता शिकार ,
इसलिए हर ब़ार तुझ पर ही होता है वार |
माँ हूँ तेरी , नहीं सह सकती यह अत्याचार ,
इसलिए आज तेरे उदगम स्थल पर ही ,
करती हूँ मैं तेरा बहिष्कार ||
इति ............
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