सूखी वे पाँखुरियाँ,
आज भी ताज़ा हैं ,
पीले - मटमैले पन्नो में |
उलझी है लट,
आज भी माथे पे ,
छुई थी जो तूने बार -बार |
पलकों मे मोती ,
रखे हैं अभी तक ,
याद है उन लम्हों की |
दुपट्टे का कोना ,
अनछुआ , अनधुला है ,
फेरा था चहेरे पर जिसे |
चिंदी -चिंदी वह टिकेट ,
बटुए के कोने मे है दबा ,
साथ बिताये पलों की दास्तान |
ये सब बंद है ,
मन की सिलवटों में ,
जब - तब खोल जिसे झाँक आती हूँ ,
एक नया जीवन जी आती हूँ ............
इति ....
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