Sunday, October 17, 2010

vaqt

जब मुझसे मिलने आओ प्रिय ,
वक़्त मुट्ठी में दबा लाना |
कंधे पर तुम्हारे सिर रखकर ,
देखूँगी की चाँद का धीरे- धीरे आना |
मैं कस कर थाम लूँगी तुम्हारी मुट्ठी ,
लेकर हाथों में  हाथ तुम्हारा |
दोनों मिलकर रोक लेंगे ,
पोरों से फिसलता वक़्त हमारा |
सीने पर  तुम्हारे सिर रखकर ,
देखूँगी चाँद का धीरे - धीरे जाना |
जब मुझसे मिलने आओ प्रिय ,
वक़्त मुट्ठी में दबा लाना |

1 comment:

  1. vaqt ko rokne ki koshish.wakai kabhi to waqt kaate nahee kat-ta aur kabhi lagtaa hai hai ki koi ise rok le!!
    shaandaar kavitaa !!

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