जब मुझसे मिलने आओ प्रिय ,
वक़्त मुट्ठी में दबा लाना |
कंधे पर तुम्हारे सिर रखकर ,
देखूँगी की चाँद का धीरे- धीरे आना |
मैं कस कर थाम लूँगी तुम्हारी मुट्ठी ,
लेकर हाथों में हाथ तुम्हारा |
दोनों मिलकर रोक लेंगे ,
पोरों से फिसलता वक़्त हमारा |
सीने पर तुम्हारे सिर रखकर ,
देखूँगी चाँद का धीरे - धीरे जाना |
जब मुझसे मिलने आओ प्रिय ,
वक़्त मुट्ठी में दबा लाना |
vaqt ko rokne ki koshish.wakai kabhi to waqt kaate nahee kat-ta aur kabhi lagtaa hai hai ki koi ise rok le!!
ReplyDeleteshaandaar kavitaa !!