सर्द सफ़ेद सन्नाटा ,
ठंडी बर्फ से लोग ,
न उमंग , न अहसास ,
शून्य में तकती निगाहें ,
कनटोपों में छिपे कान ,
क्षण भर को नजर का मिलना ,
कोरों पर मुस्कराहट का खिलाना ,
फिर वापस अपने केंद्र की ओर,
सब अपनी धुरी से बंधे ,
दूसरों के सुख - दुःख से परे ,
सर्द सफ़ेद सन्नाटा मानो जम गया है शिराओं में |
इतना बड़ा बर्फीला शहर ,
हजारों लोग , लाखों गाड़ियाँ ,
पर न कोई आवाज़ , न कोई शोर ,
न मंदिर की घंटी , न मस्जिद की अजान ,
न गुरबानी के बोल , न चर्च की प्रार्थना ,
यह नहीं कि होता नहीं यह सब यहाँ ,
पर होता है कब यही हमको नहीं पता ,
बिना आवाज़ ही सब काम निबट जाते हैं ,
दूर दूर तक फैले लोग पल में सिमिट जाते हैं ,
सर्द सफ़ेद सन्नाटा जैसे हड्डियों में बस गया है ,
इसलिए इंसान यहाँ भावशून्य हो गया है |
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