निकालो अपने -अपने रंग ,
भर डालो यह तस्वीर |
पर आपने बताया ही नहीं ,
कौन सा रंग कहाँ भरूं ?
जो भी , जैसा भी तुम्हें हो पसंद ,
यह है तुम्हारी तस्वीर , तुम्हारी छवि ...
आँखों में थी हैरत , और अधरों पर मुस्कान ,
आकाश में नीला भरूँ या पीला ?
तुम्हें दिखता हो वैसा ,
मुझे तो पीला दिखता है ,
माँ के लहराते आँचल जैसा ,
तो वही भरो , क्योंकि यह तुम्हारा है आकाश |
ज़मीं में हरा भरूँ या नीला ?
तुम्हें दिखती हो वैसी ,
मुझे तो नीली दिखती है ,
पापा की गहरी नीली आँखों जैसी ,
तो वही भरो , क्योंकि यह तुम्हारी है ज़मीं |
नदी में सफ़ेद भरूँ गुलाबी ?
तुम्हें दिखती हो वैसी ,
मुझे तो गुलाबी दिखती है ,
दीदी की खनकती हँसी जैसी ,
तो वही भरो , क्योंकि यह तुम्हारी है नदी |
सूरज में सुनहरा भरूँ या भूरा ?
तुम्हें दिखता हो वैसा ,
मुझे तो भूरा दिखता है ,
दादी के बनाऐ गरम परांठे जैसा ,
तो वही भरो , क्योंकि यह तुम्हारा है सूरज |
घर में लाल भरूँ या सतरंगी ?
तुम्हें दिखता हो वैसा ,
मुझे तो सतरंगी दिखता है ,
दादाजी के सुनाये गुदगुदाते किस्सों जैसा ,
तो वही भरो , क्योंकि यह तुम्हारा है घर |
निखर कर आई ,
अनोखी तस्वीर ,
चटक , अलग ,
पर बिलकुल अपनी ...............
भर डालो यह तस्वीर |
पर आपने बताया ही नहीं ,
कौन सा रंग कहाँ भरूं ?
जो भी , जैसा भी तुम्हें हो पसंद ,
यह है तुम्हारी तस्वीर , तुम्हारी छवि ...
आँखों में थी हैरत , और अधरों पर मुस्कान ,
आकाश में नीला भरूँ या पीला ?
तुम्हें दिखता हो वैसा ,
मुझे तो पीला दिखता है ,
माँ के लहराते आँचल जैसा ,
तो वही भरो , क्योंकि यह तुम्हारा है आकाश |
ज़मीं में हरा भरूँ या नीला ?
तुम्हें दिखती हो वैसी ,
मुझे तो नीली दिखती है ,
पापा की गहरी नीली आँखों जैसी ,
तो वही भरो , क्योंकि यह तुम्हारी है ज़मीं |
नदी में सफ़ेद भरूँ गुलाबी ?
तुम्हें दिखती हो वैसी ,
मुझे तो गुलाबी दिखती है ,
दीदी की खनकती हँसी जैसी ,
तो वही भरो , क्योंकि यह तुम्हारी है नदी |
सूरज में सुनहरा भरूँ या भूरा ?
तुम्हें दिखता हो वैसा ,
मुझे तो भूरा दिखता है ,
दादी के बनाऐ गरम परांठे जैसा ,
तो वही भरो , क्योंकि यह तुम्हारा है सूरज |
घर में लाल भरूँ या सतरंगी ?
तुम्हें दिखता हो वैसा ,
मुझे तो सतरंगी दिखता है ,
दादाजी के सुनाये गुदगुदाते किस्सों जैसा ,
तो वही भरो , क्योंकि यह तुम्हारा है घर |
निखर कर आई ,
अनोखी तस्वीर ,
चटक , अलग ,
पर बिलकुल अपनी ...............
पूनम जी,
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावमय प्रस्तुति.....अपनों के साथ ही ये संसार है......और सच अपने ही तो हमारा संसार हैं......बहुत खूब|
अच्छी अनुभूति. दादी का गरम पराँठा और सूरज! वाह!
ReplyDeleteBahut bahut shukriya.
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