ये चाहत भी कितनी अजब है.जब होती है तो ढहाती गजब है.चाहत का खेल निराला है.सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति के लिय आभार.मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है.
छोटी किन्तु बेहतरीन पोस्ट.........बहुत खूब|
रास,रंग की महफ़िल सजाना चाहती हूं,तुम राग छेड़ो,गुनगुनाना चाहती हूं .उम्र भर का साथ मुमकिन नहीं पर,पल-दो पल साथ बिताना चाहती हूं.अगर यैसे लिखा जाये तो कैसा हो ?
shukriyaa...
ये चाहत भी कितनी अजब है.
ReplyDeleteजब होती है तो ढहाती गजब है.
चाहत का खेल निराला है.
सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति के लिय आभार.
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है.
छोटी किन्तु बेहतरीन पोस्ट.........बहुत खूब|
ReplyDeleteरास,रंग की महफ़िल सजाना चाहती हूं,
ReplyDeleteतुम राग छेड़ो,गुनगुनाना चाहती हूं .
उम्र भर का साथ मुमकिन नहीं पर,
पल-दो पल साथ बिताना चाहती हूं.
अगर यैसे लिखा जाये तो कैसा हो ?
shukriyaa...
ReplyDelete