Thursday, July 7, 2011

रास और रंग की महफ़िल सजाना चाहती हूँ ,
तुम राग छेड़ो, मैं गुनगुनाना चाहती हूँ |
उम्र भर का साथ नहीं है मुमकिन ,
पल - दो पल तुम्हारे साथ बिताना चाहती हूँ |..

4 comments:

  1. ये चाहत भी कितनी अजब है.
    जब होती है तो ढहाती गजब है.

    चाहत का खेल निराला है.

    सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति के लिय आभार.

    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है.

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  2. छोटी किन्तु बेहतरीन पोस्ट.........बहुत खूब|

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  3. रास,रंग की महफ़िल सजाना चाहती हूं,
    तुम राग छेड़ो,गुनगुनाना चाहती हूं .
    उम्र भर का साथ मुमकिन नहीं पर,
    पल-दो पल साथ बिताना चाहती हूं.

    अगर यैसे लिखा जाये तो कैसा हो ?

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