Thursday, September 29, 2011

कौन हूँ मैं...हूँ मैं कौन ?

कौन हूँ मैं...हूँ मैं कौन ?
तेरी निरंतर सहचरी ,
मेरे ही कारण तू होता है सुखी ,
या मैं कर जाती हूँ तुझे दुखी ..
तेरी सबसे बड़ी मददगार ,
या फिर तुझ पर एक बोझ ,
मैं चाहूँ तो तू छू जाए अस्मा ,
या फिर चाटे तू पल भर मैं धूल..
मैं तो हूँ तेरी मुलाजिम |
राज करना मुझ पर बहुत ही है आसान,
थोड़ा सा सयंम , औ कड़ा विचार ,
मैं हूँ तेरे हुक्म की गुलाम ..
अपनाओ मुझे ,लगाओ गले से ,
अटल , अचल , अविचल ,स्थिर ,
मजबूत , अगर रहो तुम तो ..
रख दूँ तुम्हारे पैरों  पे संसार ,
मत डगमगाना , न ही देना कोई ढील,
मैं तो रहती हूँ तेरे भीतर .....मैं हूँ तेरी ....
आदत 

9 comments:

  1. आदत का ख़ूबसूरती से चित्रण करती हुई कविता
    बहुत खूब

    ReplyDelete
  2. बहुत ही सुन्दर ...........वाह......बहुत पसंद आई पोस्ट..........हैट्स ऑफ इसके लिए |

    ReplyDelete
  3. बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना , बधाई

    कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें

    ReplyDelete
  4. बहुत खूब ... कौन है ये दो काबू किए बैठी है जिस्मों जान को ...

    ReplyDelete
  5. बहुत सुन्दर भाव एवं शब्द संयोजन ....

    ReplyDelete



  6. मैं तो रहती हूँ तेरे भीतर .....
    मैं हूँ तेरी ....
    आदत

    वाह !
    बहुत ख़ूब लिखा है आपने
    आदरणीया पूनम जी !

    और श्रेष्ठ सृजन की कामना है …

    आपको सपरिवार
    नवरात्रि पर्व एवं दुर्गा पूजा की बधाई-शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !

    -राजेन्द्र स्वर्णकार

    ReplyDelete
  7. वारिस शाह न आदतां जान्दियाँ जी,
    भावें कट्टीये पौरियाँ पौरियाँ जी .

    की करिए जी ,ये आदत नहीं छूटती .

    खूबसूरत अभिव्यक्ति के लिए आभार.

    ReplyDelete
  8. "मैं चाहूँ तो तू छू जाए अस्मा ,
    या फिर चाटे तू पल भर मैं धूल..
    मैं तो हूँ तेरी मुलाजिम |
    राज करना मुझ पर बहुत ही है आसान,
    थोड़ा सा सयंम , औ कड़ा विचार ,"

    insaan bas yahi par fail ho jata hai..
    duniya bhar ki shiksha doosaron ko deta hai...
    aur khud apni aadat se hi maat khaa jata hai....

    bahut sundar rachna...
    mujhe lagta hai ki ise har insaan roopi prani ko padna chahiye...

    ***punam***
    tumhare liye...
    bas yun...hi..
    aalekh...

    ReplyDelete