Wednesday, November 30, 2011

छंटनी


कल मौसम का इशारा समझ ,
निकल पड़े झील किनारे ,
धूली धूप चमक रही थी लहरों पर,
घास ,पाती की परछाई दे रही थी निमंत्रण  
निकल पड़े हम दूर साहिल तट पर, 
भर  ली झोली ,रंग बिरंगी सीपियो से ,
अपनी धुन मे मगन चुन रहे थे स्वस्थ और सुंदर ,
तभी पैर में चुभा एक टूटा शंख ,
मुहं चिडाता बोला ...........
स्वार्थी इंसान ,
कर ली न छंटनी  , अपनी सुविधा अनुसार ,
तुम लोग भी न , नहीं सह पाते जरा सा भी भोथरापन,
जन्म से ही आदत है तुम्हे चुनने की ,
जो, कितना भी सोचो जाती नहीं ,
तुम्हारे  भीतर का खोखलापन
बाहर तलाशता रहता है सम्पूर्णता .
रिक्त , शून्य , खंडित मन ,
भागता है , विपरीत सौन्दर्य के पीछे ,
यही है " सृष्टि का सत्य "
अगर कोई करने लगे तुम्हारी भी छंटनी ???????????????????

10 comments:

  1. तुम्हारे भीतर का खोखलापन
    बाहर तलाशता रहता है सम्पूर्णता .
    ..........
    अगर कोई करने लगे तुम्हारी भी छंटनी ???????????????????bahut sahi rachna

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  2. very nice poonam ji.

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  3. सुन्दर स्रजन, ख़ूबसूरत भाव, शुभकामनाएं .

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  4. तुम्हारे भीतर का खोखलापन
    बाहर तलाशता रहता है सम्पूर्णता .
    रिक्त , शून्य , खंडित मन ,
    भागता है , विपरीत सौन्दर्य के पीछे ,
    यही है " सृष्टि का सत्य "
    अगर कोई करने लगे तुम्हारी भी छंटनी ???????????????????

    सहन नहीं होता उसी इंसान से....!
    तब उसी समय आध्यत्मिकता आड़े हाथ आती है....
    "अकेले आये हैं
    अकेले जाना है..!
    अपना क्या है...
    बस कर्तव्य निभाना है......!"

    बहुत सुन्दर....

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  5. बहुत सुंदर प्रस्तुति । मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

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  6. bahut khoob soorat rachna lgi . vastav men ak na ak din to chhatni honi hi hai .

    ak nye vishay pr kavita likhi sprem aabhar.

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  7. पूनम जी आपकी ये कविता बहुत ही अच्छी लगी.....

    धन्यवाद |

    आपका मेरे ब्लॉग पर हार्दिक अभिनन्दन ...|

    pliz Join my blog

    http://rohitasghorela.blogspot.com

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