क्या हूँ मैं तुम्हारे लिए .....
सुनू बस तुम्हारी ही व्यथा ,
तुम्हारा ही दुःख....
साथ दूँ सिर्फ ,
तुम्हारा ही त्यौहार ,
तुम्हारी ही ख़ुशी .....
जब चाहो ,
आंधी की तरह ,
रौंदते - झकझोरते ,
करते अपनी मनमानी ,
मुझे छोड़ रीता ,
चल दिए ..........
क्या हूँ मैं ,
तुम्हारे लिए .....
तुम्हारे लिए .....
मन ...
या
तन ????
मुझे छोड़ रीता ,
ReplyDeleteचल दिए
क्या हूँ मैं मन
या तन तुम्हारे लिए ?
वाह!!!!!!बहुत बढ़िया प्रस्तुति,सुंदर रचना,....poonm jee
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...:गजल...
सुंदर रचना , सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeletebahut satik abhivyakti sarthak prashn chhodti.
ReplyDeleteहम सिर्फ तन हैं ...........मन किसी को समझ नहीं आता हैं
ReplyDeleteजीवन की वास्तविकता को बखूबी अभिवुयक्त किया है आपने इन शब्दों में .....जिन्दगी का फलसफा किसे समझ आया है आज तक .....फिर भी अनवरत समझने की कोशिश में है जिन्दगी ..!
ReplyDeleteकोशिश तो बहुत की पर ,
ReplyDeleteएक हाथ से तली बजती ही नहीं हे ...
सोचता हूँ एक बार सूखे कुए ,
में छलांग मारके देखता हूँ .....
अगर कुछ तजुर्बा हाशिल हुआ तो जरूर बताऊंगा
बरना हमें तो सिर्फ ताने ही मिला करते हे ...??????