जब मन चाहे तो , बोटी सा है चूमता ,
मन किया तो ,बोटी - बोटी है नोंचता ,
जब हो खुन्नस किसी की ,
करता है बोटी - बोटी अलग ,
मिल जाए तो चटखारता ,
इधर -उधर ,गाहे - बाहे,
दिदे फाड़ है लीलता ,
फिर कहता है फिरता ,
' तू' नर्क द्वार .....
वाह ,अजब तेरे नखरे ,
मन किया तो ,बोटी - बोटी है नोंचता ,
जब हो खुन्नस किसी की ,
करता है बोटी - बोटी अलग ,
मिल जाए तो चटखारता ,
इधर -उधर ,गाहे - बाहे,
दिदे फाड़ है लीलता ,
फिर कहता है फिरता ,
' तू' नर्क द्वार .....
वाह ,अजब तेरे नखरे ,
गजब का रुबाब ,
चूस माँस- मज्जा ,
बोटी की तरह है फेंकता .... ॥
चूस माँस- मज्जा ,
बोटी की तरह है फेंकता .... ॥
pratikriya jayaj hai
ReplyDeletesarthak rachna .....
ReplyDeleteसुन्दर सार्थक रचना
ReplyDeleteहम्म्म्म....
ReplyDeleteआक्रोश झलक रहा है....जायज़ है.
अनु
amzing, speechless.....haits off.
ReplyDeleteनिशब्द करती रचना
ReplyDeleteभावमयी अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteso True
ReplyDeleteसटीक कटाक्ष....
ReplyDeleteनिःशब्द अद्भुत सटीक कटाक्ष
ReplyDeleteआपके पोस्ट पर आना बहुत ही अच्छा लगा। कविता भी अच्छी लगी। मुझे अभिप्रेरित करने के लिए आपका आभार ।
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