पता नहीं क्यों , जब होता है शुरू दिन ,
चाहे जब भी ,उस हर पल की
धुरी तुम क्यों बन जाते हो ...
स्वयं ही |
भोर की पहली किरण छूती है मुझे ,
गुलाल हो जाती हूँ , तुम्हारे अहसास से |
बहती हवा का झोंका लहरा जाता है केश ,
उंगलियाँ तुम्हारी फिर जाती हैं जैसे |
चमकती किरणों की जलती चुभन ,
लबों पर मानो तुम्हारी जुम्बिश |
शाम की ढलती लाली का सुर्ख अबीर ,
तुम्हारी चाहत का रंग जैसे मेरे संग |
सुरमई आकाश पर चन्द्र की शीतलता ,
खो कर पाने की यही है सम्पूर्णता |
पता नहीं क्यों , जब होता है शुरू दिन ,
चाहे जब भी ,उस हर पल की
धुरी तुम क्यों बन जाते हो ...
स्वयं ही ..............
चाहे जब भी ,उस हर पल की
धुरी तुम क्यों बन जाते हो ...
स्वयं ही |
भोर की पहली किरण छूती है मुझे ,
गुलाल हो जाती हूँ , तुम्हारे अहसास से |
बहती हवा का झोंका लहरा जाता है केश ,
उंगलियाँ तुम्हारी फिर जाती हैं जैसे |
चमकती किरणों की जलती चुभन ,
लबों पर मानो तुम्हारी जुम्बिश |
शाम की ढलती लाली का सुर्ख अबीर ,
तुम्हारी चाहत का रंग जैसे मेरे संग |
सुरमई आकाश पर चन्द्र की शीतलता ,
खो कर पाने की यही है सम्पूर्णता |
पता नहीं क्यों , जब होता है शुरू दिन ,
चाहे जब भी ,उस हर पल की
धुरी तुम क्यों बन जाते हो ...
स्वयं ही ..............
जबरदस्त!!
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति ,,,,
ReplyDeleterecent post...: अपने साये में जीने दो.
thnaks
Deleteबहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDelete:-)
dhnyawad
Deletesundar ati sundar
ReplyDeleteवाह बहुत खूबसूरत अहसास हर लफ्ज़ में आपने भावों की बहुत गहरी अभिव्यक्ति देने का प्रयास किया है... बधाई आपको... सादर वन्दे...
ReplyDeleteabhar
Deleteवाह ... बेहतरीन
ReplyDeletedhnyawad
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteअच्छी रचना
ReplyDeleteआप गुलाल हो जाती हैं भोर की पहली किरण से
हम भी कभी भोर की किरण के साथ किसी के अहसास से सुकुन भरी शांति से भर जाते थे...
खूबसूरत अहसास को याद दिलाने का शुक्रिया
बहुत ही सुन्दर ।
ReplyDeletedhnywad
Deleteखूबसूरत रचना
ReplyDeleteअरुन शर्मा - www.arunsblog.in