जब बोलते हो कर्ण , सुनते हो होठ ,
तब कितना भी पटको सिर ,
आवाज़ लौट- लौट आती है,
जो चीखती - दहाड़ती है भीतर ,
वह वही लावारिस लाश सी दम तोड़ जाती है ,
भिनभिनाती है वादो व नारो की मक्खियाँ ,
सत्ता - वर्दी के कूड़ेदान मे कहीं दफन हो जाती है ,
क्या कहूँ ....किससे कहूँ .... और कभी तो लगता है ,
छोड़ो जाने दो क्यों कहूँ ...?
छोटे - छोटे मासूम बच्चे ,
जब किसी के पागलपन का हो शिकार ,
हवस और नशा मिल लूटे अस्मत ,
नंगा जिस्म हो पड़ा किनारे ,
न कोई रहनुमा न कोई मुक्ति दाता,
जिनके हाथ कानून वही घातक,
क्या कहूँ ....किससे कहूँ .... और सच मानो तो ...
छोड़ो जाने दो क्यों कहूँ ..अब क्या कहूँ ???.?
तब कितना भी पटको सिर ,
आवाज़ लौट- लौट आती है,
जो चीखती - दहाड़ती है भीतर ,
वह वही लावारिस लाश सी दम तोड़ जाती है ,
भिनभिनाती है वादो व नारो की मक्खियाँ ,
सत्ता - वर्दी के कूड़ेदान मे कहीं दफन हो जाती है ,
क्या कहूँ ....किससे कहूँ .... और कभी तो लगता है ,
छोड़ो जाने दो क्यों कहूँ ...?
छोटे - छोटे मासूम बच्चे ,
जब किसी के पागलपन का हो शिकार ,
हवस और नशा मिल लूटे अस्मत ,
नंगा जिस्म हो पड़ा किनारे ,
न कोई रहनुमा न कोई मुक्ति दाता,
जिनके हाथ कानून वही घातक,
क्या कहूँ ....किससे कहूँ .... और सच मानो तो ...
छोड़ो जाने दो क्यों कहूँ ..अब क्या कहूँ ???.?
बहुत सुंदर भावपूर्ण उम्दा प्रस्तुति,,,
ReplyDeleterecent post: मातृभूमि,
HAR BAAR KII TARAH SHANDAAR, BEHTREEN
ReplyDeleteयही त्रासदी है
ReplyDeleteअत्यन्य भावुक और मार्मिक ।
ReplyDeleteभिनभिनाती है वादो व नारो की मक्खियाँ ,
ReplyDeleteसत्ता - वर्दी के कूड़ेदान मे कहीं दफन हो जाती है ,
....दिल को छूती बहुत मार्मिक रचना...
jab samaaj aur raastra patan ki or unmukh ho to rachanakaar ki jimmedariya aur badh jaati hai. hrady ko jhakjhorti rachana.
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