वे
कुछ दिनों के लिए वे खोह मे छिप जाती ,
जिस कारण चलाती थी वंश ,
उसी की वजह से अछूत बन जाती .....
कस - कस कर बांधी जाती थी छतियाँ ,
जिन से पालती थी कद्दावर नस्ल ,
वही बेवजह बेशर्मी बन जाती ....
काट - छाँट कर सील दिये जाते अंग ,
उनसे ही करती पैदा अगली पीढ़ी ,
कहीं छूते ही नापाक न हो जाए .....
गर्दनों मे फंसाए जाते अनगिनत छल्ले ,
जो हमेशा झुकती ही रही .....
आँखों की लिपाई - पुताई काजल से ,
जिन्हे उठाने पर सज़ा ही मिली ...
होठों पे मली गई फूलों की लाली ,
पर खोलते ही जिनके फटकार ही पड़ी ............
वे .............
सिर्फ और सिर्फ सजने- सजाने का सामान बनी ...वे ..
कुछ दिनों के लिए वे खोह मे छिप जाती ,
जिस कारण चलाती थी वंश ,
उसी की वजह से अछूत बन जाती .....
कस - कस कर बांधी जाती थी छतियाँ ,
जिन से पालती थी कद्दावर नस्ल ,
वही बेवजह बेशर्मी बन जाती ....
काट - छाँट कर सील दिये जाते अंग ,
उनसे ही करती पैदा अगली पीढ़ी ,
कहीं छूते ही नापाक न हो जाए .....
गर्दनों मे फंसाए जाते अनगिनत छल्ले ,
जो हमेशा झुकती ही रही .....
आँखों की लिपाई - पुताई काजल से ,
जिन्हे उठाने पर सज़ा ही मिली ...
होठों पे मली गई फूलों की लाली ,
पर खोलते ही जिनके फटकार ही पड़ी ............
वे .............
सिर्फ और सिर्फ सजने- सजाने का सामान बनी ...वे ..
behtreen lekhan
ReplyDeleteबहुत उम्दा,लाजबाब अभिव्यक्ति ,,
ReplyDeleteRecent post: ओ प्यारी लली,
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDelete
ReplyDeleteवे .............
सिर्फ और सिर्फ सजने- सजाने का सामान बनी ...वे ..----
बहुत सही और जीवन से जुडी बात कही है
सुंदर रचना
आग्रह है पढें,ब्लॉग का अनुसरण करें
तपती गरमी जेठ मास में---
http://jyoti-khare.blogspot.in
बहुत सुंदर
ReplyDeleteक्या बात