यह नीली - हरी नस ,
उभर आयी ---- सर्पीली नागिन सी -
उकेरी उन लम्हों की बिखती दास्तां ,
अपनी यादों की स्याही से ...
यादों का क्या है,
बिन सोचे - समझे यूं ही रिस आती है ,
न देखे वक्त न औकात ,
मनमानी करती हठीले बालक -सी ,
धक्कम - धक्का , देखो कहीं कोई रह न जाए पीछे ,
हर पल तेरे साथ का सिमरन ,
ख्द्बदता रहता है दिल के कड़ाहे मे ,
अनवरत - निरंतर - लगातार -
क्रियाशील -ज्वलंत ज्वालामुखी सा ...
उभर आयी ---- सर्पीली नागिन सी -
उकेरी उन लम्हों की बिखती दास्तां ,
अपनी यादों की स्याही से ...
यादों का क्या है,
बिन सोचे - समझे यूं ही रिस आती है ,
न देखे वक्त न औकात ,
मनमानी करती हठीले बालक -सी ,
धक्कम - धक्का , देखो कहीं कोई रह न जाए पीछे ,
हर पल तेरे साथ का सिमरन ,
ख्द्बदता रहता है दिल के कड़ाहे मे ,
अनवरत - निरंतर - लगातार -
क्रियाशील -ज्वलंत ज्वालामुखी सा ...
ReplyDeleteवाह . सुन्दर प्रस्तुति
भावनाओं का ज्वार सा......
ReplyDeleteअनु
यादों की तो फितरत ही यही है
ReplyDeleteअच्छी रचना, बहुत सुंदर
ReplyDeleteभावनाओं का बहता हुआ संवेग
ReplyDeleteबहुत बढिया
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत,लाजवाब
ReplyDeleteयादों का झंझावात ...
ReplyDelete