शीशे के किरचों पे चलती जिंदगी ,
बूंद - बूंद - तरसाती ये जिंदगी ,
कोरों से निकल ढुलकती जिंदगी ,
छोटी तो कभी सदियों सी जिंदगी ,
नाचती - नचाती देवदासी सी जिंदगी ,
न तेरी न मेरी बाजारू हुई ये जिंदगी ,
हल्का - गहरा खुमार है जिंदगी ,
तेरा नशा है मुझे जिंदगी ,
उफ़्फ़ - उफ़्फ़ ये जिंदगी ....उफ़्फ़..... !!!!!
बूंद - बूंद - तरसाती ये जिंदगी ,
कोरों से निकल ढुलकती जिंदगी ,
छोटी तो कभी सदियों सी जिंदगी ,
नाचती - नचाती देवदासी सी जिंदगी ,
न तेरी न मेरी बाजारू हुई ये जिंदगी ,
हल्का - गहरा खुमार है जिंदगी ,
तेरा नशा है मुझे जिंदगी ,
उफ़्फ़ - उफ़्फ़ ये जिंदगी ....उफ़्फ़..... !!!!!
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ReplyDeleteबहुत सुन्दर.बहुत बढ़िया लिखा है .शुभकामनायें आपको .
ReplyDelete.इस सुन्दर सृजन के लिए बहुत बहुत बधाई.
ReplyDeleterecent post : मैनें अपने कल को देखा,
बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती,आभार.
ReplyDeleteजिंदगी फिर भी है जिंदगी ...
ReplyDeleteखूबसूरत रचना ...
फिर भी खूबसूरत है जिंदगी....
ReplyDeleteबहुत सुंदर, अच्छी रचना
ReplyDeleteमीडिया के भीतर की बुराई जाननी है, फिर तो जरूर पढिए ये लेख ।
हमारे दूसरे ब्लाग TV स्टेशन पर। " ABP न्यूज : ये कैसा ब्रेकिंग न्यूज ! "
http://tvstationlive.blogspot.in/2013/06/abp.html
वाह.......अति सुन्दर ......
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना , शुभकामनाये
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