कल रात अलगनी पर लटकते चाँद को ,
गिरने से बचा लिया उसने ,
हौले से उठा हाथों मे ,
उछाल दिया आसमां मे,
चाँद बन गया आशिक उसका ,
उसकी याद मे घटने लगा ,
पर जब देखी छाप उसकी ,
जिस्म पर अपने इठला के ,
बढ़ने लगा ......
कहते है तब से ,
याद मे उसकी घटता औ बढ़ता है ,मजनू दीवाना..
गिरने से बचा लिया उसने ,
हौले से उठा हाथों मे ,
उछाल दिया आसमां मे,
चाँद बन गया आशिक उसका ,
उसकी याद मे घटने लगा ,
पर जब देखी छाप उसकी ,
जिस्म पर अपने इठला के ,
बढ़ने लगा ......
कहते है तब से ,
याद मे उसकी घटता औ बढ़ता है ,मजनू दीवाना..
सुंदर रचना , यहाँ भी पधारे
ReplyDeletehttp://shoryamalik.blogspot.in/2013/06/blog-post_18.html
वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें .
भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने.....
ReplyDeleteवाह क्या बात है क्या उपमेव और उपमान का सामंजस्य बिठाया है आपने खुबसूरत
ReplyDeleteवाह बहुत खूब।
ReplyDeleteअति सुन्दर भावाभिव्यक्ति । बधाई । सस्नेह
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना के लिए बधाई ।
ReplyDeleteमन को छूती रचना ....
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteमन को छूती हुई
बधाई